पृष्ठ:दासबोध.pdf/१५३

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७२ दासबोध। ["दशक ३ लेते हैं और गोरू-बछेडू ले जाते हैं, यह आधिभौतिक ताप है ॥ ४७ ॥ नाना प्रकार के धान्य और फल-वृक्ष काट लेते हैं, भीट में नमक डाल कर फसल खराब कर देते हैं, इस प्रकार की अनेक हानियों से जो सन्ताप होता है उसका नाम है आधिभौतिक ॥ ४८ ॥ छली (दगावाज), उठाई- गीर, सर्वभक्षक, कीमियागर, जादूगर, ठग, फँसानेवाला (कपटी), डाँक आदि द्रव्य-हरण करते हैं, इससे जो संकट होता है वह आधिभौतिक ताप है ॥ ४६ । गँठकटे लोग द्रव्य छोड़ लेते हैं, नाना प्रकार के अलंकार निकाल लेते हैं, अनेक वस्तुएं चूहें उठा ले जाते हैं, इससे जो दुःख होता है वह आधिभौतिक ताप है ॥ ५० ॥ बिजली गिरे, पाला पड़े या प्राणी बरसात में पड़ जाय या वह महापूर में डूब जाय तो इसे आधिभौतिक ताप कहते हैं ॥ ५१ ॥ पानी के भचर, मोड़ और धार में बहते हुए कूड़े कचरे में, अपार लहरों में या वहते हुए, वीछी, कनखजूर, अजंगर आदि जन्तुओं में यदि प्राणी पड़ जाय और किसी चट्टान या टापू में जा कर अटके और बूड़ते बूड़ते बच जाय तो इसे श्राधिभौतिक ताप समझो ॥ ५२-५३ ॥ मन के अनुसार गृहस्थी न हो, कुरूप, कर्कश और क्रूर स्त्री हो; कन्या विधवा और पुत्र मूर्ख हो तो इसे आधिभौतिक ताप समझना चाहिये ॥ ५४॥ भूत पिशाच लगे हों, शरीर पर से कोई खराव वायु निकल गई हो, या मन्त्र-भ्रष्टता के कारण प्राणी पागल होगया हो तो यह आधिभौतिक ताप है ॥ ५५ ॥ शरीर में कोई ब्रह्म-भूत लगा हो, और वह बहुत पीड़ता हो अथवा शनिश्चर का भय लगा हो तो इसे श्राधि- भौतिक ताप कहेंगे ॥ ५६ ॥ अनेक क्रूर ग्रह, घातप्रतिकूल, कालतिथि, घातचन्द्र, काल-समय, धातनक्षत्र आदि के कारण जो कष्ट मिलता है वह आधिभौतिक ताप है ॥ ५७ ॥ छींक, अपिंगला और छिपकली, अशुभ होला; काक, कलाली आदि के अंपशकुनों के कारण जो चिन्ता और कष्ट हो वह आधिभौतिक ताप है ॥५८॥ ठग, टुटपुंजिया जोशी और भडुरी लोगों के भविष्य बतला जाने पर जो मन में सन्देह लग जाता है अथवा बुरे स्वप्नों से जो घबड़ाहट होती है उसे आधिभौतिक ताप कहते हैं ॥५६॥ सियार और कुत्ता रोते हों, छिपकली शरीर पर गिरे अथवा नाना प्रकार के अपशकुनों की चिन्ता लगी हो तो यह आधिभौतिक ताप के लक्षण हैं ॥६०॥ कहीं के लिए चलने पर अपशकुन हो या नाना प्रकार के विघ्न आवें, जिनसे मनोभंग हो तो यह आधिभौतिक ताप का लक्षण

  • अशुभ-पक्षी-विशेष।