पृष्ठ:दासबोध.pdf/१६६

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चौथा दशक । पहला समास--श्रवणभक्ति। ॥ श्रीराम ॥ हे गणनाय! तेरी जय हो, जय हो । त विद्या भर में समर्थ है। अब कृपा करके मुझे अध्यात्म-विद्या का परमार्थ बतलाने की शक्ति दे ॥१॥ हे बंदमाता शारदा ! तुझे भी मैं नमन करता हूं। तेरे ही प्रताप से सकल सिद्धियां प्राप्त होती हैं और तेरे ही कारण मन स्फूर्तिरूप से मनन करने में प्रवृत्त होता है ॥ २ ॥ अव सद्गुरु का स्मरण करता हूं, जो श्रेष्ठ से भी श्रेष्ट है और जिसकी कृपा से ज्ञान-विवेक प्रकट होने लगता है ॥ ३॥ श्रोताओं ने यह अच्छा प्रश्न किया है कि भगवद्भजन कैसे किया जाय । अतएव, अनेक ग्रन्या और सत् शास्त्रों के आधार से, नवधा भत्ति का वर्णन किया जाता । इसे श्रोता लोग सावधान होकर सुनें और पावन दो॥४॥५॥ श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसंवनम् । अर्चनं वदनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ।। १ ।। श्रवण, कीर्तन, विष्णु-स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वन्दन, दास्य, सख्य और श्रात्मनिवेदन-ये भक्ति के नव भेद हैं। इनमें से अब प्रत्येक का खुलासा, एक एक समास में, करते हैं। श्रोता लोगों को सावधान हो जाना चाहिए ॥६॥ पहली भचि यह है कि हरिकथा, पुराण और नाना प्रकार का ध्या- त्मनिरूपण सुनते रहना चाहिये ॥७॥ कर्ममार्ग, उपासनामार्ग, शानमार्ग, सिद्धान्तमार्ग, योगमार्ग और वैराग्य-मार्ग-थे सब सुनते जाना चाहिये ॥८॥ अनेक प्रकार के व्रत, तीर्थ और दानों की महिमा सुनना चाहिए ॥६॥ अनेक प्रकार का माहात्म्य, अनेक स्थानों का वर्णन, अनेक मंत्र, अनेक साधन, अनेक प्रकार के तप और पुरश्चरण सुनना चाहिए ॥१०॥ दुग्धाहार करनेवाले, निराहार रहनेवाले, फलाहार करनेवाले, पत्तों का आहार करनेवाले, घास का आहार करनेवाले और नाना प्रकार का आहार करनेवाले कैसे होते हैं-उनका हाल सुनते रहना चाहिये ॥११॥ गर्मी में, जल में, शीत में, वन में, पृथ्वी के भीतर और आकाश में किस प्रकार वास किया जाता है.सो सुनना चाहिये ॥१२॥ जपी, तपी, तामस.