पृष्ठ:दासबोध.pdf/१७६

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रामाय ] बन्दनमकि। इली पति से सद्गुरु का भी पूजन करके, उनके शरण अनन्य रहना चाहिम ॥ ३०॥ यदि उपर्युक्त प्रकार से सांगोपांग पूजा न बन पड़े तो परमेश्वर की मानलपूजा तो अवश्य ही करनी चाहिए । मानसपूजा का बड़ा महत्व है ॥ ३१ ॥ मानसपूजा का लक्षण यह है कि मन ही मन में - डायना रूप, भगवान् का रूप और सम्पूर्ण पूजन-सानग्री कल्पित करके परमात्मा का अर्चन करता चाहिए ॥ ३२ ॥ मानस-पूजा में जिस जिस पदार्थ की अपने को जत्तरत हो-उस उसकी कल्पना करके परमेश्वर को मर्पण करना चाहिए ॥३३॥ छठवाँ समास-वन्दनभक्ति । ॥ श्रीराम ॥ पिछले समास में पाँचवीं भनि अर्चन के लक्षण बतलाये, अब वन्दन' नामक छठवीं भक्ति सुनिये ॥ १ ॥ ईश्वर, संत-साधु और सज्जनों को नम- स्कार करना बन्दनभजि है ॥ २ ॥ सूर्य, ईश्वर और सद्गुरु को साष्टांग भाव से नमस्कार करना चाहिए ॥ ३॥ अनेक देवताओं की प्रतिमाओं को, ईश्वर को और गुरु को साष्टांग प्रणाम कहा है और दूसरों को, उनके अधिकार के अनुसार, नमन करना चाहिए ॥४॥ छप्पन कोटि (योजन ?) विस्तार की पृथ्वी में विष्णु की अनन्त मूर्तियां रहती हैं-उनको प्रीति- पूर्वक साष्टांग नमस्कार करना चाहिए ॥ ५॥ महादेव, विमा, सूर्य और हनुमान के दर्शन से पाप कटते हैं, तथा नित्य-नियम से, इनको नमस्कार फरने से विशेष पुण्य होता है ॥ ६ ॥ शंकरः शेषशायी च मार्तडो मारुतिस्तथा ॥ एतेषां दर्शनं पुण्यं नित्यनेमे विशेषतः ॥ १ ॥ भक्ता, ज्ञानी, वीतरागी, महानुभाव, तापसी, योगी और सत्पात्र को देख कर वेग ही नमस्कार करना चाहिए ॥ ७ ॥ वेदज्ञ, शास्त्रज्ञ, सर्वज्ञ, पंडित, पौराणिक, विद्वजन, याज्ञिक, वैदिक और पवित्र जनों को नम- स्कार करते रहना चाहिए ॥८॥ जिसमें कोई विशेष गुण देख पड़ें उसीमें सद्गुरु का अधिष्ठान है; अतएव, अति आदर से, उसको नमन करना चाहिए ॥६॥ गणेश, सरस्वती, शक्ति, विष्णु और शिव की अनन्त मूर्तियां हैं-कहां तक बतलाऊं उन सब को, प्रेमपूर्वक, 'नमस्कार करना चाहिए