पृष्ठ:दासबोध.pdf/१७७

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दासबोध। दशक ४ ॥ १० ॥ सब देवताओं को जो नमस्कार किया जाता है वह एक भग- वान् को मिलता है-इसी अर्थ में एक वचन कहा है, वह सुनिये ॥ ११ ॥ आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् ॥ सर्वदेवनमस्कारः केशवं प्रति गच्छति ॥ १ ॥ अतएव, सब देवताओं को बड़े आदर के साथ, नमस्कार करना चाहिए। देवताओं को परमात्मा का अधिष्ठान मानने से परम सुख होता है ॥ १२॥ जैसे देवता लोग परमात्मा के अधिष्ठान है वैसे ही सत्पात्र लोग सद्गुरु के अधिष्ठान है,इसलिए इन सव को नमस्कार करना चाहिए॥१३॥ नमस्कार से लीनता आती है, नमस्कार से विकल्प नाश होता है, और नमस्कार से अनेक प्रकार के सजनों से मित्रता होती है ॥ १४ ॥ नमस्कार से दोप जाते हैं, नमस्कार से अन्याय क्षमा होते हैं और नमस्कार से सन्देह दूर होते हैं ॥ १५॥ लोग कहते हैं कि सिर नीचा हो जाने से बढ़ कर और कोई दण्ड नहीं है अर्थात् नम्रतापूर्वक लजित होजाने से ही अप- राध क्षमा हो जाता है । अतएव साधुसंतों की वन्दना करके सदैव उन- की शरण में रहना चाहिए ॥ १६ ॥ नमस्कार से कृपा उमड़ती है, नम- स्कार से प्रसन्नता बढ़ती है और नमस्कार से गुरुदेव साधकों पर प्रसन्न होता है ॥ १७ ॥ सदैव नमस्कार करते रहने से-सदा सब से नम्र रहने से-पापों के पर्वत नाश होते हैं और परम पिता परमेश्वर कृपा करता है ॥१८॥ नमस्कार से पतित लोग पावन होते हैं, नमस्कार से संतों की शरण मिलती है और नमस्कार से जन्म-मरण दूर होता है ॥ १६ ॥ कोई बड़ा भारी अन्याय करके आया हो और साप्टांग नमस्कार करे तो वह अन्याय श्रेष्ठों को क्षमा करना ही चाहिए ॥२०॥ अतएच, नमस्कार से बढ़ कर और कोई अनुकरण करने योग्य बात नहीं है । नमस्कार से मनुष्यों को सद्बुद्धि प्राप्त होती है ॥२१॥ नमस्कार करने में कुछ खर्च नहीं पड़ता; कोई कष्ट नहीं उठाना पड़ता और न, नमस्कार करने में, किसी सामग्री ही की जरूरत होती है ॥ १२ ॥. संसार से छूटने के लिए, नमस्कार के समान, और कोई सहज उपाय नहीं है। परन्तु नमस्कार अनन्य होकर करना चाहिए इतना सहज उपाय छोड़ कर अनेक साधनों और उद्योगों में व्यर्थ क्यों परिश्रम करना चाहिए ? ॥२३॥ साधक जब भक्तिभावपूर्वक नमस्कार करता है तब साधू को उसकी चिन्ता लगती है और वह उसको मुक्ति पाने का सुगम मार्ग बतला देता है ॥ २४ ॥ अतएव वन्दन-