पृष्ठ:दासबोध.pdf/२१०

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समास ] बद्ध-लक्षण। १२६ छोड़ कर विद्या ग्रहण करनी चाहिये । उससे शीघ्र ही ईश्वर की प्राप्ति होती है ॥ ६३ ॥ जैसे कोई सन्निपात के दुख में भयानक दृश्य देखता ना और नोपधि पाते ही सुख और आनन्द पा जाता हो, वैसे ही अज्ञान- कप सन्निपात में भी मिथ्या दृश्य ( सांसारिक ) देख पड़ते हैं: परन्तु जानरी आषधि लेते ही उन मिथ्या दृश्यों का पता भी नहीं चलता १६४-६५॥ मटे स्वप्नों से, जो सोनेवाला, भय से चिल्ला रहा हो उसे जगा देने से पहले की निर्भय दशा मिल जाती है ॥ ६६ ॥ स्वप्न है तो मिथ्या जीः परन्तु उसे (देखनेवाले को), सत्य जान पड़ने के कारण, दुख होता है। परन्तु, जो मिथ्या है उसका निरसन ही कैसे किया जाय?॥३७॥ वह (स्वग्न) जागनेवाले के लिए तो झूठा है: पर सोनेवाले को घेरे हुए है; जाग उठने पर उसे भी कोई भय नहीं है || || इसी प्रकार अविद्या की नींद इननी गाड़ी होती है कि उससे बड़ा भारी भ्रम समा जाता है। ऐसी दशा में श्रवण और मनन के द्वारा पूर्ण जागृति प्राप्त करनी चाहिए ॥६॥ जोहन्यपूर्वक विषयों ले विरत है, वही जागृत (सिद्ध)है॥७०॥ परन्तु जो विषयों के विरत नहीं हुया वह साधक है-उसे बड़प्पन का अभिमान छोड़ कर पहले साधन ही करना चाहिए ॥७१॥ जो साधन भी नहीं कर सकता वह अपने सिद्धपन के अभिमान से ही, वद्ध (सांसारिक बन्धनों से जकड़ा हुना) है-उससे तो मुमुक्ष ही अच्छा है, जो ज्ञान का अधिकार तो रयता है ॥ ७२ ॥ अव बद्ध, मुमुन्न, साधक और सिद्ध के लक्षण अगले समासों में बतलाये जाते हैं। सावधान होकर सुनिये ॥ ७३-७४ ॥ सातवाँ समास-बद्ध-लक्षण । ॥ श्रीराम || सृष्टि के सम्पूर्ण चराचर जीव चार प्रकार के हैं:-बद्ध; सुसुच, साधक और सिद्ध । इनके सिवाय पांचवाँ प्रकार और कोई नहीं है । अब, इन चारों के लक्षण एक एक समास में विस्तारपूर्वक बतलाते हैं ॥ १-३ ॥ उत्ता चारों प्रकार के जीवों में से पहले, इस समास में, वद्ध के लक्षण, सावधान होकर, सुनिये । शेष तीनों के लक्षण आगे बतलाये गये हैं ॥४-५ ॥ जैसे अंधे को, बिना दृष्टि के, दसो दिशाएं शून्याकार जान - पड़ती है उसी प्रकार, स्वार्थान्धता के कारण, बद्धको भी, ज्ञानदृष्टि के विना, सारा संसार सूना समझ पड़ता है ॥ ६ ॥ भक्ता, ज्ञाता, तपस्वी,