पृष्ठ:दासबोध.pdf/२६३

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१५२ दासबोध। [ दशक ७ सत्र में विस्तृत है।॥१५॥ ब्रह्म में सृष्टि भारती है और सृष्टि में ब्रह्म रहता है-अनुभव लेने पर वह अंशमात्र से भासता है ॥ १६ ॥ अंशमात्र से तो सृष्टि के भीतर है; परन्तु बाहर उसकी मर्यादा कोई निश्चित नहीं कर सकता; क्योंकि सम्पूर्ण ब्रह्म ब्रह्मांड के पेट में समायेगा कैसे ? ॥ १७ ॥ अमृती (चरणामृत रखने का छोटा पात्र ) में सम्पूर्ण श्राकाश नहीं रखा। जा सकता-इसी लिए कहते हैं कि, उसका कुछ 'अंश' है ॥ १८ ॥ उसी प्रकार ब्रह्म सब में मिला हुआ है । परन्तु वह हिलता नहीं; किन्तु व्यापकता से सब में परिपूर्ण भरा हुआ है ! ॥ १६ ॥ वह पंचभूतों में मिश्रित होकर भी इस प्रकार उनसे अलग है जिस प्रकार पंक में रह कर भी आकाश अलिप्त रहता है ॥ २०॥ ब्रह्म के लिए कोई दृष्टान्त नहीं है। परन्तु समझाने के लिए देना ही पड़ता है ! यदि विचार किया जाय तो आकाश ही में, कुछ कुछ, उसके दृष्टान्त का साहित्य पाया जाता है ॥२१॥ श्रुति और स्मृति में क्रमशः ब्रह्म के लिए 'खंब्रह्म' और 'गगन- सदृशं' कहा है; इसी लिए आकाश से उसकी उपमा दी जाती है ॥ २२ ॥ जैसे पीतल में यदि कालिमा न हो तो फिर वह स्वच्छ सोना ही है, ऐसे ही यदि श्राकाश मैं शून्यत्व न हो तो वही ब्रह्म है ॥ २३ ॥ इसी लिए, गगन की तरह ब्रह्म और पवन की तरह माया समझी जाती है, पर ब्रह्म का दर्शन नहीं होता ॥ २४ ॥ शब्द-सृष्टि की रचना क्षण क्षण में होती जाती है; पर वह वायु की तरह ठहरती नहीं-चलती जाती. अस्तु । इस प्रकार माया मिथ्या है; शाश्वत 'केवल ब्रह्म'ही है और वह सब में व्याप्त है ॥ २६ ॥ वह पृथ्वी में भेदा हुआ है; परन्तु वह कठिन नहीं है (क्योंकि पृथ्वी स्वतः जड़ है, उसको भेदनेवाला कठोर . चाहिए! )-उसकी मृदुता के लिए दूसरी उपमा ही नहीं है ! ॥२७॥पृथ्वी से अधिक जल, जल से अधिक अग्नि और अग्नि से भी अधिक 'वायु सूक्ष्म है ॥ २८ ॥ वायु से भी अधिक श्राकाश और आकाश से भी अधिक सूक्ष्म ब्रह्म है ॥ २६॥ यह वज्र में भी भेदा हुआ है, परन्तु उसकी कोसलता जैसी की तैसी बनी है-वह नहीं गई। ब्रह्म उपमा-रहित भरा हुश्रा है-वह न कठिन है न मृदु है!॥३०॥वह पृथ्वी में व्याप्त है; पर पृथ्वी नाश होती है और वह नाश नहीं होता-इसी प्रकार जल सूखता है; पर वह, जल में रह कर भी, नहीं सूखता ! ॥३१॥ वह परब्रह्म अग्नि में रहता है; पर जलता नहीं; पवन में रहता है; पर चलता नहीं और गगन में रहता है; पर भासता नहीं ॥ ३२ ॥ यह कैसे श्राश्चर्य की बात है कि, वह