पृष्ठ:दासबोध.pdf/२७५

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दासबोध [ दशक.. उसीको व्यास ने आगे बहुत विस्तार से बतलाया है॥३६॥वसिष्ठ ऋपि,ने योगवासिष्ठ' में श्रीरामचन्द्रजी को वसिष्ठसार' बतलाया है और कृष्ण भगवान् ने अर्जुन से सप्तश्लोकी गीता कही है ॥३७॥ इस प्रकार कहां तक वतला-अनेक महर्षियों ने अनेक लोगों को ज्ञानोपदेश किया है। सारांश, अद्वैत-शान सत्य ही है ॥ ३८ ॥ इस लिए आत्मज्ञान को मिथ्या । बतलाने से अधोगति मिलती है। परन्तु जो लोग प्रज्ञारहित (अज्ञान ) हैं उन्हें यह जान नहीं पड़ता! ॥३६॥ जहां शेप की प्रज्ञा मन्द पड़ गई और श्रुति भी मौन होगई वह स्वरूपस्थिति, ज्ञान का अभिमान रख कर, बत- लाई नहीं जा सकती ॥ ४० ॥ और, जो बात अच्छी तरह अपनी समझ में नहीं आती उसे मिथ्या क्यों कहना चाहिए ? उसे सद्गुरु के मुख से दृढ़तापूर्वक सीखना चाहिए ॥४१॥ मिथ्या वात सत्य जान पड़ती है और सत्य वात मिथ्या मान लेते हैं, तथा मन अकस्मात् संदेह-सागर में डूब जाता है ! ॥४२॥ मन को कल्पना करने की आदत है और मन जिसकी कल्पना करता है सो वह (ब्रह्म) नहीं है, इस कारण, 'मैंपन ' के ही मार्ग से, संदेह दौड़ता है ॥ ४३ ॥ तो फिर, पहले उस मार्ग (मैंपन के मार्ग) ही को छोड़ देना चाहिये। तब परमात्मा से मिलना चाहिये और साधु-संगति से संदेह, को समूल नाश करना चाहिये ॥४४॥ परन्तु मैपन शस्त्र से टूट नहीं सकता, फोड़ने से फूट नहीं सकता और, कुछ भी करो, वह छोड़ने से छूट नहीं सकता ॥ ४५ ॥ मैंपन से वस्तु' का वोध नहीं होता, परन्तु सति चली जाती है और वैराग्य की शक्ति गलित हो जाती है ॥ ४६॥ मैंपन से प्रपंच नहीं बनता, परमार्थ डूब जाता है; तथा यश, कीर्ति और प्रताप सभी उड़ जाते हैं ॥ ४७ ॥ उससे मित्रता टूटती है, प्रीति घटती है और अभिमान पाता है ॥ ४ ॥ मैंपन से विकल्प उठता है, कलह मचती है और एकता का प्रेम टूटता है। ४६ ॥ मैंपन किसीको भी अच्छा नहीं लगता; फिर वह भगवान् को कैसे अच्छा लगे? इस लिए जो संपन' को छोड़ कर रहता है वही समाधानी है॥५०॥ मैंपन का त्याग कैसे करना चाहिए, ब्रह्म का अनुभव कैसे करना चाहिए और समाधान (शान्ति) कैसे, तथा किस प्रकार, प्राप्त करना चाहिए ? ॥५१॥ ' मैंपन ' को विवेक से, जान कर, छोड़ना चाहिए; ब्रह्म होकर, ब्रह्म का, अनुभव करना चाहिए। और निःसंग होकर समाधान प्राप्त करना चाहिए ॥ ५२ ॥ वही समा- धानी धन्य है जो मैंपन को छोड़ कर साधन करना जानता है ॥ ५३॥ इस बात की कल्पना करने से और भी कल्पना ही उठती है कि "मैं तो