पृष्ठ:दासबोध.pdf/२९०

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समास २] माया के अस्तित्व में शंका । २०३ जाने, पैदा होने, मरने, आदि की उपाधि लगाने से महा पाप लगता है ॥४॥ परमात्मा न कभी जन्म ले सकता है और न मर सकता है। जब उसकी सत्ता मात्र से अन्य देवता असर होते हैं, तब उसे मृत्यु कैसे आ सकती है ? ॥ ४६॥ उपजना, सरला, आना, जाना, दुख भोगना-यह सब उस.परमात्मा का कार्य है। वह कर्ता-कारणरूप से अलग है ॥५०॥ अंतःकरण, पंचप्राण, बहुत से तत्व और पिंडज्ञान, इत्यादि सब चञ्चल हैं, इसी लिए ये परमात्मा नहीं हो सकते ॥ ५१ ।। इस प्रकार जो कल्पनारहित है, वही परमात्मा है; पर वास्तव में उसमें पर- मात्मापन की बात भी नहीं है-(अर्थात् "परमात्मा-पन" में कल्पना श्रा जाती है और वह कल्पनातीत है) १५२॥ इस पर शिप्य यह आशंका करता है कि “जब परमात्मा कल्पनातीत है तव फिर उसने यह ब्रह्मांड कैसे रचा? यह तो कपिन से कर्ता-कारण कार्य में आता है ॥ ५३ ॥ द्रष्टापन के कारण जिस प्रकार द्रष्टा (देखनेवाला) अनायास दृश्य बन सकता है उसी प्रकार.कर्तापन से निर्गुण में भी गुण श्रा सकता है ॥५४॥ अतएव, ..: मुझे वतलाइये कि ब्रह्मांडकर्ता कौन है, उसकी पहचान क्या है और पर- मात्मा लगुण है या निर्गुण है ? ॥५५॥कोई कोई कहते हैं कि वह ब्रह्म इच्छा- मात्र से प्रसृष्टिकर्ता है; उसे छोड़ कर और सृष्टिकर्ता कौन हो सकता है ? ॥ ५६॥ अस्तु । इस प्रकार की अनेक वाते हैं। परन्तु, हे स्वामी, अब आप मुसे यह बतलाइये कि, यह सारी माया कहां से हुई ॥ ५७ ॥ इस पर वक्ता कहता है कि अच्छा, आगे भाया का वर्णन किया जायगा । श्रोता लोगों को सावधान हो जाना चाहिए ॥५८-६०॥

" दूसरा समास-माया के अस्तित्व में शंका । ।। श्रीराम ।। श्रोताओं ने जो यह पूछा कि निराकार में यह चराचर माया कैसे हुई, और जिसमें गुण

  • कर्ता को " की " कहने से ही उसमें कर्तृत्वगुण आ जाता

होता है वह कार्य है । इस रीति से कारण ही ( कर्ता ही) कार्य वन रहा है। जिस प्रकार देखनेवाले में देखने का गुण या धर्म होने के कारण वह स्वयं भी दूसरे का दृश्य बनता है; जैसे इन्द्रियां विषयों की द्रष्टा हैं, परन्तु वे स्वयं मन की दृश्य बन रही हैं- अर्थात् मन-द्वारा देखी जाती हैं।