पृष्ठ:दासबोध.pdf/३०८

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खलंग और मोक्ष। २२७ एड़ता और मान होने पर भी उन्हें सारासार का विचार नहीं मालूम तोता ॥ २ ॥ जो दुन्धित्त है और रानदिन पालत में रहता है उसे पर- लोक नहीं मिल सकता ॥ २८ ॥ ज्यांनी वन, दुश्चित्तता से छूटता है ल्याची मालस उसे या घरता है जहां श्रालस आया वहां फिर मनुष्य को अवकाश ही नहीं मिलता ॥ २६ ॥ श्रालस से विचार रह जाता है, प्राचार इन जाता है और, कुछ भी क्यों न किया जाय, भालसी मनुप्य उत्तम उत्तम बातें याद नहीं रख सकता ॥ ३० ॥ पालन्स से श्रवण नहीं बनता, निरुपण नहीं हो सकता और परमार्य की पहचान मलीन हो जाती है ॥ ३१ ॥ श्रालस से नित्य- नेमन्ट जाता है, अभ्यास डूब जाता है और श्रालस से, खूव बालस ही बढ़ता है ॥३२॥ श्रालस से धारणा और धृति चली जाती है, वृत्ति मलीन हो जाती है और विवेक की गति मंद हो जाती है ॥ ३३ ॥ श्रालस से निद्रा बढ़ती है, वासना विस्तृत होती है और निश्चयात्मक सद्बुद्धि चली जाती है ॥ ३८ ॥ दुश्चिता से श्रालस पाता है; आलस ले सुन्वनींद पाती है और सुखनींद से केवल श्रायु का नाश होता ॥ ३५ ॥ निद्रा, आलस और दुश्चित्तता का होना ही मूर्ख का सजण है । इन अवगुणों के कारण निरूपण समझ में नहीं लाता ॥३६॥ जहां ये तीनों अलक्षण हैं वहां विवेक कहां से होगा? अज्ञानी पुरुप इन अघगुणों ही में बड़ा सुख मानता है ॥ ३७॥ भूख लगते ही खाता है, खाकर उठते ही पालस आता है और बालस आते ही निघड़क सो जाता है ॥ ३८ ॥ तथा सोकर उठते ही फिर दुश्चित्त बन जाता है! सारांश, ऐसे पुरुप कभी सावधानचित्त तो रहते ही नहीं; फिर निरू- पण में उन्हें आत्महित का ज्ञान हो तो कैसे ? ॥ ३६॥ बन्दर को रत और पिशाच को द्रव्य-कोश सौंप देने से जो दशा होती है वही दशा दुश्चित्त पुरुष के आगे निरूपण की होती है ॥ ४० ॥ • अस्तु । श्रोताओं ने पहले जो यह आशंका की कि सन्त-समागम करने से मोक्ष कितने दिन में मिलता है उसका उत्तर अब सावधान होकर सुनना चाहिए ॥४१॥४२ ॥ जैसे लोह पारस के छूने से उसी क्षण सोना हो जाता है, जलबिन्दु सागर में तत्क्षण मिल जाता है और जैसे कोई नदी गंगा में मिलते ही गंगा का रूप हो जाती है ॥ ४३ ॥ . उसी प्रकार जो पुरुष सावधान, उद्योगी और दक्ष हैं उन्हें तत्काल ही संतसंग से मोक्ष मिलता है और दूसरों के लिए तो वह अलक्ष है-उसे देख ही