पृष्ठ:दासबोध.pdf/३११

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२३० दासबोध। दिशक ‘परम दुर्लभ और सुदृढ़ नरदेहरूपी नौका, गुरुरूपी कर्णधार, और ईश्वरकृपारूपी अनुकूल वायु, पाकर भी जो मनुष्य भवसागर पार नहीं करता वह आत्महत्यारा है ॥ २२॥२३ ॥ ज्ञान बिना मनुष्य को. चौरासी लाख जन्ममृत्यु भोगनी पड़ती हैं-मानो वह उतनी ही (चौरासी लाख ) आत्महत्याएं करता है-इसी लिए वह आत्महत्यारा हुआ ॥ २४ ॥ प्राणी नरदेह में जब तक ज्ञान नहीं प्राप्त कर लेता तबतक जन्ममरण नहीं छूटता और नाना दारुण नीच योनियां भोगनी पड़ती हैं ॥ २५॥ ज्ञान न होने के कारण प्राणी को रीछ, बन्दर, कुत्ता, सुअर, घोड़ा, बैल भैंसा, गधा, कौवा, मुर्गा, स्यार, विलार, गिर्दान (गिर्गिट), मेंढक और मक्खी आदि की नीच योनियां भोगनी पड़ती हैं; पर मूर्ख मनुष्य (जाति) अगले जन्म की फिर भी आशा रखता है ! ॥ २६ ॥ २७ ॥ यह विश्वास रखने में लाज भी नहीं आती कि मरने पर फिर भी मनुष्य का ही शरीर मिलेगा ! ॥ २८ ॥ ऐसा कौनसा पुण्य, जोड़ा है जो फिर नरदेह सिलेगा ! अगले जन्म की आशा रखना दुराशा मात्र है ॥ २६ ॥ यह मूर्ख, अज्ञान मनुष्य (जाति) अपने ही संकल्प से स्वयं अपने को ही बांध लेता और स्वयं अपना ही शत्रु बन बैठता है:-॥ ३० ॥ आत्मैव ह्यात्मनो वंधुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ अस्तु । वह संकल्प का बन्धन सन्तसमागम से टूट जाता है, ॥ ३१ ॥ सब चराचर जीवों का शरीर पांच भूतों से बनता है। प्रकृति स्वभाव ही जगत के आकार में वर्तने लगती है ॥ ३२॥ देह, अवस्था, अभिमान, स्थान, भोग, मात्रा, गुण और शक्ति आदि चौघुटी तत्वों का लक्षण है ॥ ३३ ॥ ऐसी पिंड-ब्रह्मांड की रचना है; विस्तार से कल्पना बढ़ गई है और तत्वज्ञान का निर्धार करते करते नाना मत भटक रहे हैं ॥ ३४ ॥ उन नाना मतों में नाना भेद हैं, और' भेदों से विवाद बढ़ता जाता है; परन्तु एकता की बात सिर्फ साधु ही जानते हैं॥३५॥ उस बात का लक्षण यह है किः-देह पंचभूतिक है, और उसमें आत्मा मुख्य है ॥ ३६ ॥ देह अंत में नाश हो जाती है; अतएव, उसे आत्मा नहीं कह सकते । देह में नाना तत्वों का समुदाय आगया है ॥ ३७ ॥ अंतःकरण, प्राण, विषय, दस इंद्रियां सूक्ष्म देह, इत्यादि का विवेक, या लक्षण, शास्त्रों में बतलाया . १देशक १७ समास ९ पद्य १-६ में इसका विस्तृत वर्णन है । २ इसका विशेष विवरण द० १० सं० ९.५० १८-२२ में देखिये ।