पृष्ठ:दासबोध.pdf/३२२

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समास १.] बहुंधा अनुभव। २४१ पूजा करनी चाहिए। नारायण ही जगत् के लोगों का मावाप है ॥११॥ कोई कहता है कि, शास्त्र देखना चाहिए; उसमें ईश्वर ने जो श्राशा दी है उसीके अनुसार चल कर परलोक प्राप्त करना चाहिए ॥ १२॥ कोई कहता है कि अरे भाई, शास्त्र देखने से काम नहीं चलता, साधु की शरण में जाना चाहिए ॥ १३॥ कोई कहता है अजी, ये बातें छोड़ो; व्यर्थ ही क्यों बकवाद करते हो-सब से मुख्य तो यही है कि, हृदय में भूत- दया हो ॥ १४॥ कोई कहता है, अच्छा तो यही है कि, अपने प्राचार ले रहे और अंतकाल में सर्वोत्तम परमात्मा का नाम ले ॥ १५ ॥ कोई कहता हैं, पुण्य होगा तभी नाम आवेगा; नहीं तो अन्तकाल में विस्म- रण हो जायगा। ॥ १६ ॥ कोई कहता है कि, जीते ही जी सार्थक करना चाहिए। कोई कहता है कि तीर्थाटन करना चाहिए ॥१७॥ कोई कहता है कि यह सब झगड़ा है-तीयों में क्या रखा है ? वहां तो पानी और पत्थर की भेट है ! डुबकी मार मार कर व्यर्थ के लिए क्यों हैरान होना चाहिए ? ॥ १८॥ कोई कहता है कि वाचालता छोड़ो जी, भूमंडल में तीवों की गाघ महिमा है; उनके दर्शन मात्र ही से महापातक भस्म हो जाते हैं ! ॥ १६॥ कोई कहता है कि, सब का कारण जो मन है उसको रोकने से तीर्थ अपने ही पास है, कोई कहता है कि नहीं, नहीं, प्रसन्नतापूर्वक 'कीर्तन' करना चाहिए ॥ २० ॥ कोई कहता है कि सब से अच्छा तो योग है; मुख्य करके उसीको पहले साधना चाहिए और अकस्मात् देह को अमर करना चाहिए ! ॥२१॥ कोई कहता है कि, इससे क्या होता है; काल को धोखा न देना चाहिये। कोई कहता है कि भक्ति- मार्ग का साधन करना चाहिए ॥ २२॥ कोई कहता है कि, ज्ञान अच्छा है; कोई कहता है कि नहीं, साधन करना चाहिए और कोई कहता है कि, सदा मुक्त रहना चाहिए ॥ २३ ॥ कोई कहता है कि, अनर्गल पाप से डरना चाहिए; कोई कहता है कि अरे, हमारा तो मार्ग ही खुला हुआ है! ॥ २४ ॥ कोई कहता है कि, सब से अच्छा तो यही है कि, किसीकी निन्दा या द्वेष न करे; कोई कहता है कि दुष्ट-संग सदा के लिए छोड़ देना चाहिए ॥ २५ ॥ कोई कहता है कि भाई, जिसका खाय उसीके सामने यदि मरे तो इससे तत्काल ही मोक्षपद प्राप्त होता है! ॥ २६ ॥ कोई कहता है कि चलो, ये बातें छोड़ो, सब से पहले रोटी का डौल चाहिए; फिर बैठे बैठे चाहे जितना बकवाद किया करे ॥२७॥ कोई कहता है कि, वर्षा ठीक समय पर होती जाय तो सब योग ठीक रहते हैं; क्योंकि अच्छा यही है कि अकाल न पड़े ! ॥ २८ ॥ कोई कहता ३१