पृष्ठ:दासबोध.pdf/३२३

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दासबोध । [ दशक है कि तपोनिधि बनने से सकल सिद्धियां प्रसन्न होती हैं; कोई कहता है, अरे, सब से पहले इन्द्रपद प्राप्त करना चाहिए ! ॥२६॥ कोई कहता हैं कि आगम: देखना चाहिए, वैताल प्रसन्न कर लेना चाहिए, इससे स्वर्ग में परमेश्वर मिलता है ! ॥ ३०॥ कोई कहता कि अघोर मंत्र से ही स्वतंत्रता मिल सकती है और उसीके द्वारा श्रीहरि की कलन, अर्थात् लक्ष्मी, प्रसन्न होती है ! ॥ ३१ ॥ उसी लक्ष्मी में सब धर्म लगे हैं-अंन्य क्रियाकर्म कहां से आया ! कोई कहता है कि, उसीके मद से तो लोग कुकर्म करते हैं ! ॥ ३२॥ कोई कहता है कि, मृत्युंजय के जप ही का प्रयत्न करना चाहिए-इसीसे सव संकल्प सिद्ध होते हैं ! ॥ ३३॥ कोई कहता है कि, बटुक भैरव की पूजा करने से सब वैभव मिलता है और कोई कहता है कि, झोटिंग ही सब कामना पूर्ण करता है ! ॥ ३४ ॥ कोई कहता है कि, काली कंकाली; कोई कहता है, भद्रकाली और कोई कहता है कि " उच्छिष्ट चांडाली" को वश करना चाहिये ॥ ३५॥ कोई कहता है कि, विघ्नहर गणेश की पूजा करनी चाहिए; कोई कहता है, भोलाशंकर को पूजना चाहिए और कोई कहता है कि, भगवती शीन प्रसन्न होती है ॥ ३६॥ कोई कहता है कि, खंडोबा जल्दी ही भाग्यवान बनाता है; कोई कहता है कि, वेंकटेश की भक्ति करना संब से अच्छा हैं ॥ ३७ ॥ कोई कहता है कि, पूर्व-कमों के अनुसार फल मिलता है; कोई कहता है कि नहीं, प्रयत्न करना चाहिए, और कोई कहता है, अंजी कुछ नहीं, सब ईश्वर ही पर छोड़ देना चाहिए ! ॥ ३८ ॥ कोई कहता है कि कहां का लाये ईश्वर ! वह तो भलों की, कट-द्वारा, परीक्षा ही करता रहता है! कोई कहता है कि, इसमें ईश्वर का कोई दोष नहीं, यह तो युग का धर्म है ॥ ३६॥ कोई आश्चर्य मानते हैं। कोई विस्मित होते हैं और कोई घबड़ा कर कहते हैं कि जो कुछ हो, सो देखना चाहिए ! ॥ ४० ॥ इस प्रकार, प्रापंचिक जनों के लक्षण, यदि बतलाये जाय तो बहुत हैं; पर यहां पर, कुछ थोड़े से चिन्ह बतला दिये हैं ॥४१॥ अस्तु । अब ज्ञाताओं के भिन्न भिन्न अनुभव भी बतलाते हैं। साव- धान होकर सुनिये:- ॥ ४२ ॥ कोई ज्ञाता कहता है कि, भक्ति करना चाहिए; श्रीहरि सद्गति देगा । कोई कहता है कि, ब्रह्मप्राप्ति कर्म ही से

  • तंत्रशास्त्रः-आगत शिववक्त्रेभ्यो; गतञ्च गिरिजाश्रुतौ।

मितञ्च वासुदेवस्यः तस्मादागम उच्यते ।