पृष्ठ:दासबोध.pdf/३४

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प्रस्तावना। थी कि समर्थ अपने समीप किसी स्थान में रहें तो नित्य समागम का लाभ हो । उन्होंने कई वार प्रार्थना भी की, पर समर्थ ने विशेष ध्यान न दिया। तब शिवाजी ने एक पत्र भेजा जिसमें भिन्न भिन्न अनेक प्रसंगों का उल्लेख है । यह पर समर्थ और शिवाजी के पारस्परिक सम्बन्ध का ऐतिहासिक प्रमाण है । इस पत्र से जो बातें प्रकट होती है उनका कुछ सारांश नीचे दिया जाता है । इस पन्न से, पड़नेवाले स्वयं निश्चय कर लेंगे कि समर्थ और शिवाजी का कैसा धना सम्बन्ध थाः- " श्रीसमर्थ ने शिवाजी को उपदेशमंत्र देकर यह आज्ञा दी थी कि “ तुम्हारा मुख्य धर्म राज्यसम्पादन करके धर्मस्थापना करना, देव और ब्राह्मणों की सेवा करना, प्रजा की पीड़ा दूर करके उसका पालन और रक्षा करना है।" उसी समय समर्थ ने यह आशी- वाद भी दिया था कि “ तुम्हारे मन में जो इच्छा होगी वह सब पूर्ण होगी।" इस आज्ञा के अनुसार शिवाजी राज्य-सम्पादन का जो उद्योग किया वह सफल हुआ और उनका मनोरथ “ स्वामी" के " आशीर्वाद के प्रताप " से पूर्ण हुआ। शिवाजी का यह विश्वास दृढ़ था कि “ दुष्ट, दुरात्मा जनों का नाश और विपुल द्रव्य-प्राप्ति " श्रीगुरुचरणों के प्रताप ही का फल है । ऐसे समर्थ सद् गुरु रामदासस्वामी के न्धरण-कमलों में अपना सारा राज अर्पण करके शिवाजी ने यह इच्छा की थी कि, निल गुरुचरणों की सेवा करने का अवसर मिलना चाहिए। उस समय समर्थ ने यही कहा कि " हमारे पहले बताये हुए धर्म के अनुसार बर्ताव करना ही सेवकाई है।" इसके बाद शिवाजी ने यह प्रार्थना की कि स्वामी किसी निकट के स्थान में रहे तो बार बार दर्शन का लाभ होगा और किसी स्थान में श्रीराम की मूर्ति स्थापित करके नठ का प्रबन्ध किया जाय तो सम्प्रदाय की वृद्धि होगी। इसके अनुसार समर्थ ने चाफल में श्रीराम की स्थापना तो की; परन्तु " स्वयं आस-पास के गिरिगवरों में ही रहा करते थे ।" इसके बाद शिवाजी ने यह प्रार्थना की:--" श्रीराम की पूजा महोत्सव आदि धर्मकृत्य सांगोपांग करने के लिए कितने गाँव नियत किये जावें सो आज्ञा दीजिए।" इस पर समर्थ ने कहा, “ किसी विशेष उपाधि की आवश्यकता नहीं है। यदि श्रीराम की सेवा करने का तुम्हारा निश्चय ही है तो यथावकाश जो कुछ नियत करने की इच्छा हो सो करो।" तव शिवाजी ने श्रीसमर्थ- संप्रदाय की सेवा करने के हेतु गाँव और भूमि-दान की सनद लिख कर समर्थ को भेज दी और यह निवेदन किया कि, श्रीराम का उत्सव सदा करते रहने की मुझे आज्ञा दीजिए।" शिवाजी का बहुत आग्रह देख कर समर्थ सितारा के पास सज्जनगढ़ के किले में रहने लगे । शिवाजी ने वहाँ एक भठ बनवा दिया। शिवाजी और समर्थ के सम्बन्ध में जितनी बातें लिखी जाँय सब थोड़ी ही होंगी ! अब सिर्फ तीन और बातों का उल्लेख करके यह विषय समाप्त करेंगे । एक दिन समर्थ माहुली-संगम पर लान, संध्या करके भिक्षा माँगते हुए सितारे में शिवाजी के महल में गये और ." जय जय श्रीरघुवीर समर्थ" की गर्जना करके भिक्षा