पृष्ठ:दासबोध.pdf/३४३

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२६२ दासबोध। [ दशक अष्टधा प्रकृति) की हलचल का विचार करने से जान पड़ता है कि, उनके बहुत से रूप हैं। वे नाना प्रकार बदलते रहते हैं। वे कहां तक बतलाये जायें? ॥ ५३ ॥ इस प्रकृति का विवेक द्वारा अच्छी तरह से निरसन करना चाहिए। इसके वाद, फिर, उस परमेश्वर परमात्मा का अनन्य भाव से भजन करना चाहिए ॥ ५४ ॥ सातवाँ समास-विकल्प-निरसन । ॥ श्रीराम ॥ श्रोता भाग्यका करता है:-पहले एक स्थूल देह है; इसके बाद फिर उसमें अन्तःकरण-पंचक है। ज्ञातापन का विवेक स्थूल के ही कारण से है॥१॥ इसी प्रकार, ब्रह्मांड के बिना मूलमाया में जानपन नहीं था सकता । स्थूल के आधार से सभी काम चलता है ॥ २ ॥ जव स्थूल ही निर्माण नहीं हुआ तव अंतःकरण कहां रहेगा ? ॥३॥ उपर्युक्त आशंका का उत्तरः-रेशम के कीड़े की जाति के, कई छोटे-बड़े जीव, अपनी शक्ति के अनुसार, अपनी पीठ ही पर घर बना लेते हैं और उसीके भीतर रहते हैं॥४॥ तथा शंख, सिप्पी, घोंघे और कौड़े पहले निर्माण होते हैं या पहले उनके घर बनते हैं ? इसका भी विचार करना चाहिए ॥ ५॥ वास्तव में पहले उपर्युत प्राणी ही उत्पन्न होते हैं और फिर वे अपने घर बनाते है-यह वात प्रत्यक्ष अनुभव की है-इसके बतलाने की कोई जरूरत नहीं ॥ ६ ॥ इसी प्रकार पहले सूक्ष्म और फिर स्थूल निर्माण होता है । अस्तु । इसी दृष्टान्त से श्रोताओं का प्रश्न हल हो जाता है ! ॥७॥ इसके बाद श्रोता फिर यह पूछता है कि, अब मुझे जन्म-मरण का विचार बतलाइये ॥ ८॥ जन्म देनेवाला कौन है और जन्म लेनेवाला कौन है ? यह कैसे जानना चाहिए ? ॥ ६ ॥ कहते हैं कि, ब्रह्मा जन्म देता है, विष्णु प्रतिपाल करता है और रुद्र संहारता है ॥ १०॥ परन्तु यह प्रवृत्ति (जनरूढ़ि) का कथन समझ में नहीं आता! अनुभव की दृष्टि से यह कथन विश्वसनीय नहीं हो सकता ! ॥ ११ ॥ ब्रह्मा को फोन जन्म देता है ? विष्णु का कौन प्रतिपालन करता है और महाप्रलय में रुद्दको संहार कौन करता है ? ॥ १२ ॥ मेरी समझ में तो यह सब सृष्टि का प्रभाव है-यह सारा माया का स्वभाव है। अच्छा यदि निर्गुण देव