पृष्ठ:दासबोध.pdf/३४५

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दासबोध । [ दशक ९ हुया शरीर फिर जन्म नहीं पा सकता! ॥ २६ ॥ जो मटका अचानक फूट गया वह फुट ही गया-वह जिस प्रकार फिर नहीं बनता, उसी प्रकार मृत मनुप्य फिर जन्म नहीं पाता ! ॥ ३०॥ अर्थात् मर कर जन कोई जन्म ही नहीं पाता तब तो फिर, श्रोताओं की राय में, अज्ञान और समान बराबर ही हुए !॥३१॥ इस पर वक्ता कहता है कि, लुनोजी, सारा पाखंड ही मत बना डालो ! यदि शंका श्राई हो तो विक-द्वारा विचार करना चाहिए ॥ ३२ ॥ यह कभी नहीं हो सकता कि, प्रयत बिना कोई काम हो जाय, बिना खाये पेट भर जाय, या ज्ञान के बिना मुक्त हो जाय ॥ ३३ ॥ जिसने स्वयं भोजन कर लिया है उसको जान पड़ता है कि, संसार तृप्त हो चुका; पर यह कैसे हो सकता है-जब तक कि, सब लोग तृप्त न हो जायँ ! ॥ ३४ ॥ जो तैरना सीखता है वहीं पार होता है और जो तैरना नहीं जानता वह डूब जाता है, इसमें कोई शंका नहीं ॥ ३५ ॥ उसी प्रकार जिन्हें ज्ञान प्राप्त होता है वही तरते हैं। जिनका बंधन टूट जाता है वही मुक्त होते हैं ॥ ३६ ॥ मुक्त पुरुप कहता है कि, बंधन नहीं है; और इधर, लोग प्रत्यक्ष बंदी बने हैं-उनका क्या हाल है-सो भी तो तुम देखो ! ॥३७॥ जो दूसरे का दुख नहीं जानता वह "दूसरे के दुख में सुख माननेवाला" है ! यही हाल इस अनुभव का भी है ॥३॥ जिसको आत्मज्ञान हो जाता है, जो वास्तव में सम्पूर्ण तत्वों का विचार कर लेता है, उसे अनुभव मिलने पर परम-शान्ति होती है ॥ २६ ॥ यह कयन कि, ज्ञान से जन्म-मरण मिटता है, यदि मिथ्या माना जाय, तो वेद, शास्त्र और पुराणों को भी मिथ्या ही कहना पड़ेगा ॥ ४० ॥ और वेद, शास्त्र तथा महानुभावों का कथन यदि संसार में मिथ्या माना जाय तो हम लोगों की ही बात कौन भान सकता है ? अतएव, जिसमें प्रात्म- शान होता है वही मुक्त होता है ॥४१॥ ४२ ॥ यह कथन भी ज्ञान ही का है कि, वास्तव में सभी मनुष्य मुक्त हैं, पर जब शान हो तभी यह सम्सव है ॥ ४३ ॥ आत्मज्ञान होने से दृश्य मिथ्या हो जाता है; परन्तु अज्ञान-दशा में यही दृश्य सब को घेरे रहता है ! ॥ ४४ ॥ अस्तु; इतने से यह प्रश्न हल हो जाता है-अर्थात् ज्ञानी ज्ञान से मुक्त होता है और अज्ञानी पुरुप अपनी कल्पना ही से बँधा रहता है ॥ ४५ ॥ विज्ञान के समान अज्ञान, मुक्त के समान बद्ध, और निश्चय के समान अनुमान, मानना ही न चाहिये ॥ ४६॥ यह बात सच है कि, वास्तव में बन्धन कुछ भी नहीं है; पर वह सब को घेरे हुए तो हैं ? ज्ञान के सिवाय