पृष्ठ:दासबोध.pdf/३४६

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समास ] बद्ध का पुनर्जन्म। २६५ , $ . उसका और कोई उपाय ही नहीं है॥४७॥ पहले तो यही आश्चर्य देखो कि, कुछ भी न होकर भी, वह सब को बांधे हुए है। लोग इस बंधन (माया) को (शान के द्वारा) मिथ्या नहीं समझते; इसी लिए तो वे बद्ध" हैं ! ॥४८॥ इस भरोसे में रहना कि, “भोले भाव ही से सिद्धि होती है" गौण बात है। मुख्य बात तो यही है कि, विवेक, या : ज्ञान, को प्राप्त कर के तत्काल ही मुक्त होना चाहिए ॥४६॥ प्राणी के मुक्त होने के लिए, सब से पहले, जानने की कला होनी चाहिए । फिर क्या है, सब कुछ जानने से, सहज ही में, प्राणी बंधन से अलग-ब्रह्म-स्वरूप-हो जाता है ॥ ५० ॥ कुछ भी न जानना 'अज्ञान' है और सब कुछ जानना ज्ञान' है, तथा सब कुछ जानने की भावना का भी लय हो जाना 'विज्ञान' है । बस, यही दशा या जाने पर प्राणी स्वयं आत्मा हो जाता है ।। ५१ ॥ जो अमृत का सेवन करके स्वयं अमर हो गया है वह औरों के लिए कहता है कि, ये लोग कैसे मरते हैं ? इसी प्रकार विवेकी पुरुष बद्ध के लिए कहता है कि, यह फिर जन्म कैसे लेता है ? ॥ ५२ ॥ झाड़ इंक करनेवाला-भाड़वैया-लोगों से कहता है कि, क्यों भाई, तुम्हे भूत कैसे लगता है ? और निर्विष पुरुष कहता है कि, तुम्हें विष कैसे चढ़ता है ? ॥ ५३ ॥ परन्तु ये बातें ऐसे नहीं मालूम हो सकतीं। पहले स्वयं उसी दशा में अाना चाहिए-अर्थात् विवेक को एक ओर रख कर, पहले स्वयं बद्ध के समान बन कर, बद्ध के लक्षणों का विचार करना चाहिए। ऐसा करने से फिर उससे पूछने की आवश्य- कता नहीं रहती ॥ ५४ ॥ जागनेवाला सोनेवाले से कहता है कि, अरे, बर्राता क्यों है ? पर यह पूछने की अपेक्षा, यदि उसे वरने का अनुभव लेना है तो, स्वयं सोकर ही देखना चाहिए ॥ ५५ ॥ चूंकि ज्ञाता की वृत्ति, ज्ञान के कारण, जागृत होती है। अतएव, वह बद्ध की तरह फँसती नहीं । अघाये हुए को भूखे का अनुभव नहीं होता ॥ ५६ ॥ बस, इतने से आशंका मिट जाती है। यह सिद्ध है कि, ज्ञान से मोक्षप्राप्ति होती है और विवेक करने से आत्मानुभव प्राप्त होता है ।। ५७ ।। आठवाँ समास-बद्ध का पुनर्जन्म । ॥ श्रीराम ॥ ज्ञाता तो ज्ञान के विचार से छूट जाता है; पर बद्ध को फिर जन्म