पृष्ठ:दासबोध.pdf/३७४

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समास १० 1 निश्चल और चंचल। २६३ वल्लामा ययों करना चाहिए ? = ! स्वरूप न जानते हुए नाम पर न भटकना चाहिए। प्रतीति बिना, केवल अनुमान-शान से, गड़बड़ मचता निश्चल गगन में चंचल वायु भरभराहट के साथ बहने लगता

  • परन्तु उस गगन और समीर में भेद है ॥१०॥ उसी प्रकार परब्रह्म

निधन -उसमें चंचल माया का भ्रम भासता है। अब उस भ्रम का 'चुलासा किये देता हूं ॥ ११॥ जिस प्रकार गगन में पवन चलता है जली प्रकार निश्चल (बल) में स्फूर्तिलक्षणरूपी इच्छा (माया) का म्युनगारूप ले चलन होता है ॥ १२ ॥ ब्रह्म की अहंता से चेतना होती है, बड़ी मृलनकृति कहलाती है और उसीले यह ब्रह्मांड की सहाकारणकाया रन्त्री हुई है ॥ १३॥ स्यूल, सूक्ष्स, कारण, महाकारण, ये जिस प्रकार पिंक के चार देह है उसी प्रकार चिराट, हिरण्यगर्भ, अव्याकृत, मूल- प्रकृति ये चार, देह ब्रह्मांड के हैं ॥ १४ ॥ यह पंचीकरण शास्त्रसम्मत है। विवाहिरण्यगर्भ, अव्याकृत और मूलमाया को ईश्वरतनुचतुष्टय बने हैं, इसी लिए चेतना को ऊपर मूलमाया बतलाया है ॥ १५ ॥ परमात्मा, परमेश्वर, परेश, ज्ञानघन, ईश्वर, जगदीश, जगदात्सा और जादीश्वर पुरुप-नाम हैं ॥ १६ ॥ उसे सत्तारूप, ज्ञानस्वरूप, प्रकाशरूप, ज्योतिरूप, कारणरूप, चिद्रूप, शुद्ध, सूक्ष्म और अलिप्त कहते हैं ॥ १७ ॥ उन्न नात्मा, अन्तरात्मा, विश्वात्मा, द्रया, सानी, सर्वात्मा, क्षेत्रज्ञ, शिवात्मा, जीवात्मा, देही और कूटस्थ कहते हैं ॥ १८ ॥ उसे इन्द्रात्मा, ब्रह्मात्मा, हरिहरात्मा, यमात्मा, धर्मात्मा, नैऋत्यात्मा, चरुण-वायु-कुवे- रात्मा और ऋपि-देव-मुनि-धर्ता कहते हैं ॥ १६ ॥ गण, गंधर्व, विद्याधर, यक्ष, किन्नर, नारद, तुंबर, आदि, सब का जो आत्मा है उसीको सर्वात्मा कहते हैं ॥ २० ॥ चन्द्र, सूर्य, तारामंडल, भूमंडल, मेघमंडल, इक्कीस स्वर्ग, और सप्त पाताल, इत्यादि सब का व्यापार वही अन्तरात्मा चला रहा है ॥ २१ ॥ वह गुप्त वेलि चारों ओर फैली हुई है। उसके पुरुप-नाम तो ले चुके । अब उसीके स्त्रीनाम श्रोताओं को सुनना चाहिए:-॥ २२ ॥ उसे मूलमाया, जगदीश्वरी, परमविद्या, परमेश्वरी, विश्ववंद्या, विश्वेश्वरी और त्रैलोक्यजननी कहते हैं ॥ २३॥ उसे अंतर्हतु, अन्तर्कला, मौन्य- गर्भा, चेतनाशक्ति, चपला, जगज्योति, जीवन-कला, परा, पश्यन्ति और