पृष्ठ:दासबोध.pdf/३८४

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सांसारिक उपदेश। 1 जाते हैं: यह प्रत्यक्ष है; अनेक पुरखा लोग चले गये-यह सब जानते को होः पर निश्चय क्या किया? ॥ ६ ॥ घर में तो आग लगी हुई है और घर का मालिक सावकाश सोरहा है-ऐसे आत्महत्यारे को कौन भन्दा बाहेगा ? ॥ ७॥ पुण्यमार्ग सारा डूबा हुआ है, पापसंग्रह वहुत हो जुका है; और यमयातना का धक्का कठिन है ! ॥ ॥ इस लिए अब गलान करना चाहिए, वहुत सँभाल कर चलना चाहिए । इहलोक और परलोक दोनों साधना चाहिए ॥ ६॥ पालस का फल प्रत्यक्ष है; जमु- नई आकर नींद या जाती है और आलसी लोग इसीको सुख मान कर चाहते हैं ॥३०॥ उद्योग करने से यद्यपि कष्ट होता है; परन्तु आगे सुल मिलता है। यत करने से खाने-पीते आदि सब प्रकार का सुख मिलता हैं ॥११॥ आलस से उदासीनता और दरिद्रता आती है, प्रयत्न निष्फल जाता है और दुर्भाग्य प्रकट होता है ॥ १२ ॥ इस लिए बालस न चने सही वैभव मिल सकता है और इहलोक तथा परलोक में भी मनुष्य को समाधान होता है ॥ १३ ॥ भन्नु । शब: प्रयल कौनसा करना चाहिए, सो थोड़ी देर सावधान होकर ल:- ॥ १४॥ बड़े सबेरे उठ कर कुछ उत्तम वचन याद करना चाहिए और यवा-शक्ति परमात्मा का स्मरण करना चाहिए ॥१५॥ इसके बाद ऐसी जगह दिशा के लिए जाना चाहिए जो किसीको मालूम न हो ! और निर्मल जल से शौच तथा श्वाचमन (कुल्ला) करना चाहिए ॥ १६ ॥ मुखमार्जन, प्रातःलान, संध्या, तर्पण, देवतार्चन करके अग्निपूजन और उपासना सांगोपांग करनी चाहिए ॥ १७ ॥ इसके बाद कुछ जलपान करके गृहकार्य करना चाहिए और मधुर भाषण से सब को राजी रखना चाहिए ॥ १८ ॥ अपने अपने व्यापार में सवार रहना चाहिए। दुन्चित्त रहने से दुष्ट लोग धोखा देते हैं ॥ १६ ॥ सभी जानते हैं कि, दुश्चित्तता और आलस से मनुष्य चूक जाता है, ठग जाता है, विसर जाता है, छोड़ देता है और याद आने पर तड़फड़ाता है ॥ २० ॥ इस , लिए मन सावधान और एकान रखना चाहिए, तभी खाना पीना अच्छा 'लगता है ॥ २१ ॥ भोजन के बाद, कुछ पढ़ना और चर्चा करना चाहिए या एकान्त में जाकर नाना प्रकार के अन्यों का मनन करना चाहिए ॥ २२ ॥ ऐसा करने से ही मनुष्य चतुर हो सकता है, अन्यथा मूर्ख ही रहता है। लोग खाते हैं और वह मूर्ख, दीनरूप किये हुए, टुकुर टुकुर हरता है ! ॥ २३ ॥ अब भाग्यवान् के लक्षण सुनिये:-ऐसा मनुष्य अपना