पृष्ठ:दासबोध.pdf/४०५

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दासबोध । [ दशक १२ लोक की उत्पत्ति होती है ॥ ८॥ फिर सकल-संहार का कारण तमोगुण- रूपी रुद्र उत्पन्न होता है। बस, यहां से कर्तृत्व समाप्त होता है ॥ ६ ॥ वहां से फिर पंचभूत स्पष्ट दशा को प्राप्त होते हैं । इस प्रकार अष्टधा प्रकृति का स्वरूप मूलमाया ही में होता है ॥ १० ॥ निश्चल में जो चलन होता है वही वायु का लक्षण है । पंचभूत और त्रिगुण मिल कर अष्टधा सूक्ष्म प्रकृति होती है ॥ ११ ॥ आकाश अन्तरात्मा ही की तरह होता है; उसकी महिमा अनुभव से जानना चाहिए । उसीसे वायु का जन्म होता है ॥ १२ ॥ उस वायु के दो प्रकार होते हैं; एक शीतल और दूसरा उष्ण । शीतलं वायु से तारागण और चन्द्र होता है; तथा उपण से सूर्य, अग्नि और बिजली, इत्यादि होते हैं । शीतल और उष्ण दोनों मिल कर 'तेज' कहलाता है ॥ १३ ॥ १४ ॥ उस तेज से आप होता है, आप से पृथ्वी का रूप होता है । इसके बाद अनन्त ओषधियां उत्पन्न होती हैं ॥१५॥ श्रोषधियों से अनेक प्रकार के बीज तथा अन्नादि के रस उत्पन्न होते हैं तथा उन्हींसे भूमण्डल में चौरासी लाख योनियों का विस्तार होता है ॥ १६॥ इस प्रकार सृष्टि-रचना होती है । इसका विचार मन में लाना चाहिए । प्रतीति के बिना संशय का पात्र बनना पड़ता है ॥ १७ ॥ इस प्रकार उत्पत्ति होती है और इसी प्रकार संहार भी होता है। इसका विचार करना ही 'सारासार-विचार' कहलाता है ॥ १८ ॥ जो जो जहां से पैदा होता है वह वह वहीं लीन हो जाता है-इस प्रकार महा- प्रलय में सब का संहार होता है ॥ १६ ॥ जो आदि, मध्य और अन्त में शाश्वत तथा निरंजन है उसीका ज्ञाता पुरुप को अनुसंधान लगाना चाहिए ॥ २०॥ नाना प्रकार की रच होती जाती है; पर वह कुछ भी टिकती नहीं-इस कारण सार-प्रसार के विचार की जरूरत है ॥ २१ ॥ अन्तरात्मा को द्रष्टा और साक्षी कह कर सब लोग महिमा गाते हैं; पर इस सर्वसाक्षिणी अवस्था का प्रत्यय करना चाहिए ॥ २२ ॥ आदि से लेकर अन्त तक सब माया का ही विस्तार है और उसमें नाना विद्याएं तथा कला-कौशल हैं ॥ २३ ॥ जो उपाधि का अंत पावेगा उसे मालूम होगा कि, यह सब भ्रम है; और जो उपाधि में फँस जायगा उसे कौन निकाल सकता है ? ॥ २४ ॥ विवेक और अनुभव के काम सन्देह और भ्रम से कैसे हो सकते हैं ? सारासार विचार के योग से ही ब्रह्म पा सकते हैं ॥२५॥. वास्तव में मूलमाया ब्रह्मांड का महाकारण देह है;