पृष्ठ:दासबोध.pdf/४०६

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समास ] विषय-त्याग! ३२७ परन्तु विवेकहीन पुरुप इसी अपूर्ण को पूर्ण ब्रह्म कहते हैं ॥ २६ ॥ सृष्टि में वहुत प्रकार के लोग हैं; कोई राज्य भोगते हैं और कोई विष्टा ढोते हैं; अब प्रत्यक्ष देख लो ! ॥ २७ ॥ ऐसे बहुत लोग होते हैं और सब अपने को बड़ा कहते हैं; पर विवेकी पुरुप सब कुछ जानते हैं ॥ २८ ॥ ऐसी दशा है; इस लिए विचार चाहिए। बहुतों के कहने से इस संसार का विगाड़ न करना चाहिए ॥ २६ ॥ यदि पुस्तक ज्ञान से निश्चय हो जाय तो फिर गुरु करने की आवश्यकता ही क्या रह गई ? अतएव अपने अनु- भव से विवरण करना चाहिए ॥ ३० ॥ जो वहुतों के कहने में लगा, समझ लो कि, वह अवश्य वेगा। एक मालिक न होने पर तनखाह किससे माँगे?॥३१॥ सातवाँ समास--विषय-त्याग । ॥ श्रीराम ॥ न्याय के कारण निष्ठुर बोलना बहुतों को बुरा लगता है । जी मच- लाते समय भोजन करना अच्छा नहीं है ॥ १॥ बहुत लोग विपयों की निन्दा करते हैं; परन्तु वही स्वयं उनका सेवन करते हैं। क्योंकि विषय- त्याग से शरीर की रक्षा होना असम्भव है ॥२॥ कहना कुछ और करना कुछ-इसका नाम है विवेकहीनता । इसले संसार में हँसी होती है ॥३॥ अच्छी तरह देखो, ठौर ठौर में ऐसा कहा है कि, बिना विषय- त्याग के परलोक कुछ प्राप्त नहीं हो सकता ॥ ४॥ प्रपंची खाते-पीते हैं तो परमार्थी क्या उपवास करते हैं ? नहीं । विपयों के विषय में दोनों समान ही दिखते हैं ॥ ५॥ अतएव, हे देव, कृपा करके मुझे यह बतला- इये कि, देह रहते हुए संसार में विपयों को कौन त्याग सकता है ? ॥६॥ यह बात तो विचित्र मालूम होती है कि सम्पूर्ण विषय छोड़ दिये जायँ; तभी परमार्थ किया जाय ॥ ७ ॥ ऊपर श्रोता का कथन हुआ; अब वक्ता इस पर उत्तर देता है:- ॥८॥ वैराग्य से त्याग जब किया जाता है तभी परमार्थ का योग होता है। प्रपंच के त्यागने से सांगोपांग परमार्थ बनता है ॥ ६ ॥ प्राचीन समय में बहुत ज्ञानी इस आर्यावर्त में हो गये। उन्होंने भी जब पहले बहुत कष्ट, सहा है तभी भूमंडल में विख्यात हुए हैं ॥ १०॥ बाकी लोग मत्सर. करते करते ही चले गये-अन्न अन्न करके मर गये और कितने ही पेट