पृष्ठ:दासबोध.pdf/४१५

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तेरहवाँ दशक। पहला समास-आत्मानात्म-विवेक । ॥ श्रीराम ॥ आत्मा और अनात्मा का विवेक करना चाहिए, करके अच्छी तरह भनन करना चाहिए; और मनन करके दृढ़तापूर्वक जी में धरना चाहिए ॥१॥ आत्मा कौन है और अनात्मा कौन है, इसका निरूपण अन साव- धान होकर सुनोः- ॥२॥ पुराणों के कथनानुसार चार खानि, चार वाणी, और चौरासी लाख जीव संसार में बरत रहे हैं ॥ ३ ॥ इस सृष्टि में अपार, नाना प्रकार के, शरीर दिखते हैं । अब, यह निश्चय करना चाहिए कि उनमें आत्मा कौन है॥४॥वह प्रत्यक्ष दृष्टि में देखता है, श्रवण में सुनता है, रसना में स्वाद लेता है ॥ ५॥ घ्राण में वास लेता है, सर्वांग में छूता है और वाचा में शब्द का ज्ञान करता है ॥ ६॥ वह साव- धान रह कर चंचल है और अकेला ही; इन्द्रियों द्वारा, चारो ओर, सारी हलचल मचा रहा है ॥ ७ ॥ जो पैर चलाता है, हाथ हिलाता है, भौंह सिकोड़ता है, आख फिराता है और संकेत-लक्षण बतलाता है वही श्रात्मा है ॥ ८ ॥ जो ढिठाई करता है, लजाता है, खुजलाता है, खाँसता है, ऑकता है, यूँकता है और भोजन करता तथा पानी पीता है वही श्रात्मा है ॥ ६ ॥ जो मलमूत्र त्याग करता है, सम्पूर्ण शरीर को सम्हालता है और प्रवृत्ति-निवृत्ति का विचार करता है वही आत्मा है ॥ १० ॥ जो सुनता है, देखता है, सूंघता है, चखता है, नाना प्रकार से पहचानता है, सन्तोष पाता है और डरता है वही आत्मा है ॥ ११ ॥ जो श्रानन्द, विनोद, उद्वेग, चिन्ता, काया, छाया माया, ममता और जीवन-समय में नाना व्यथा पाता है वही श्रात्मा है ॥ १२ ॥ जो पदार्थ की आस्था रखता है, लोगों में बुरा-भला करता है, अपनों को रखता है और परायों को मारता है वही आत्मा है ॥ १३ ॥ युद्ध के समय में दोनों दलों के अनेक शरीरों में जो छाया रहता है और जो परस्पर मरता गिरता और मार गिराता है वही नात्मा है ॥ १४ ॥ वह पाता है, जाता है, देह में बर्तता है, हँसता है, रोता है, पछताता है, उद्योग के अनुसार धनवान् और गरीब होता है ॥ १५॥ जो डरपोक होता है, बलवान होता है, विद्यावान् होता है,