पृष्ठ:दासबोध.pdf/४३४

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चौदहवाँ दशक । पहला समास-निस्पृह-लक्षण । ।। श्रीराम ।। निस्पृह की युक्ति, बुद्धि और चतुराई का सिखापन सुनो । इससे सदा समाधान रहता है ॥१॥ जैसे मंत्र सहज और फलदायक हो, ओषधियां साधारण और गुणदायक हों, वैसे ही मेरे वचन सादे और अनुभव- युक्त हैं ॥२॥ इनसे अवगुण तत्काल ही चले जाते हैं और उत्तम गुण प्राप्त होते हैं। इस लिए ये तीन ओषधिरूपी वचन श्रोताओं को ध्यान- पूर्वक लेवन करना चाहिए ॥३॥ पहले तो निस्पृहता रखना ही न चाहिए और यदि रख ली हो तो छोड़ना न चाहिए और यदि छोड़ दी हो तो पहचानवालों में घूमना न चाहिए ॥ ४॥ कांता को दृष्टि में न रखना चाहिए, कान्ता-विपय का स्वाद मन को न चखाना चाहिए और यदि धैर्य का भंग हो जाय तो लोगों में फिर अपना मुख तक न दिखाना चाहिए ॥ ५॥ एक स्थल में न रहना चाहिए, संकोच न रखना चाहिए और मोह में फंस कर द्रव्य या दारा की तरफ न देखना चाहिए ॥ ६॥ आचारभ्रष्ट न होना चाहिए, यदि कोई द्रव्य दे तो न लेना चाहिए और अपने ऊपर कोई दोष न आने देना चाहिए ॥ ७॥ भिक्षा माँगने में लज्जा न करनी चाहिए, बहुत भिक्षा न लेना चाहिए और पूछने पर भी अपनी पहचान न देना चाहिए ॥८॥ सजा हुआ और मलीन वस्त्र न. पहनना चाहिए, मिष्टान्न न खाना चाहिए, दुराग्रह न करना चाहिए और मौका देख कर चलना चाहिए ॥६॥ भोग में मन न रखना चाहिए, देहदुख से घबड़ाना न चाहिये और आगे जीवन की श्राशा न रखनी चाहिए ॥ १०॥ विरक्ति न छूटने देना चाहिए, धैर्य भंग न होने देना चाहिये और, विवेकबल से, ज्ञान मलीन न होने देना चाहिए ॥ ११ ॥ ! करुणां-कीर्तन छोड़ना न चाहिए, अन्तरं-ध्यान मोड़ना न चाहिए और सगुण मूर्ति का प्रेमतंतु तोड़ना न चाहिए ॥ १२ ॥ भन में चिन्ता न रखना चाहिए, कष्ट में खेद न मानना चाहिए और कुछ भी हो; समय पर धैर्य न छोड़ना चाहिए ॥ १३ ॥ अपमान होने से बुरा न मानना चाहिए; कोई ताना मारे तो दुख न करना चाहिए और कुछ भी हो, धिकारने पर, खेद न करना चाहिए॥१४॥विरक्त पुरुष को लोकलाज न रखना चाहिए,