पृष्ठ:दासबोध.pdf/४३८

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समास २] भिक्षा-निरूपण। ३५६ भी न रहना चाहिए, बहुत साधनों में न पड़ना चाहिए; पर बिना साधन रहना भी अच्छी बात नहीं है ॥ ६६ ॥ बहुत विषय न भोगना चाहिए; पर विलकुल विषय-त्याग किया नहीं जा सकता । देह से मोह न रखना ( चाहिए; पर वहुत कष्ट भी न सहना चाहिए ॥ ७० ॥ अलग रह कर अनुभव न लेना चाहिए पर विना अनुभव लिए रहना न चाहिए। आत्मस्थिति बतलाना न चाहिए; पर बिलकुल स्तब्धता भी अच्छी नहीं ।। ७१ ॥ मन न रहने देना चाहिए-उन्मन होना चाहिए, पर मन विना काम नहीं चलता ! अलक्ष 'वस्तु ' लक्ष में नहीं आती; पर उसे लखे विना रहना भी अच्छा नहीं ॥ ७२ ॥ वह मन-बुद्धि से अगोचर है; पर मन-बुद्धि के बिना उसका ज्ञान भी नहीं होता । जानपन भूलना चाहिए; परन्तु अजानपन भी अच्छा नहीं ॥ ७३ ॥ ज्ञातापन न रखना चाहिए, पर शान बिना काम नहीं चलता। अतयं वस्तु तर्क में नहीं श्राती; पर तर्क विना रहना अच्छा नहीं ॥ ७९ ॥ दृश्य का स्मरण करना अच्छा नहीं पर विस्मरण भी न होने देना चाहिए । कुछ चर्चा न करना चाहिए; पर विना चर्चा किये भी काम नहीं चलता ॥ ७५ ॥ लोगों में भेद न मानना चाहिए; पर वर्णसंकर भी न करना चाहिए । अपना धर्म न छोड़ना चाहिए; पर धर्माभिमान भी अच्छा नहीं ॥७६॥ आशाबद्ध वात न बोलना चाहिए, विवेक बिना न चलना चाहिए और कुछ भी हो, शान्तिभंग न होने देना चाहिए ॥७७ ॥ अव्यवस्थित पोथी न लिखना चाहिए; पर बिना पोथी के भी काम नहीं चलता । अव्यवस्थित न पढ़ना चाहिए, पर बिना पढ़े रहना भी अच्छा नहीं ॥ ७८ ॥ निस्पृह को वक्तृत्व न छोड़ना चाहिए; परन्तु शंका निकालने पर विवाद भी न करना चाहिए और श्रोताओं की वात का बुरा न मानना चाहिए ॥ ७९ ॥ यह उपदेश मन में रखने से सब सुख मिलते हैं और महन्तपन के लक्षण आप ही आप श्रा जाते हैं ॥८॥ दूसरा समास-भिक्षा-निरूपण । ॥ श्रीराम ॥ ब्राह्मण की मुख्य दीक्षा यह है कि, भिक्षा माँगना चाहिए और "ओं- भवति-पक्ष" की रक्षा करना चाहिए ॥ १॥ भिक्षा माँग कर जो खाता . है वह निराहारी कहलाता है और वह भिक्षा माँगने के कारण प्रतिग्रह