पृष्ठ:दासबोध.pdf/४४३

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दासबोध। [ दशक १४ चाहिए, ताकि निश्चय हो जाय और संशय मिट जाय ॥ ४५ ॥ जिसमें नाना प्रकार के प्रसंग, विचार, योग, विवरण और तत्वचर्चा का सार हो उसे काव्य कहते हैं ॥४६॥ जिसमें नाना साधन, पुरश्चरण, तप, तीर्थाटन, श्रादि का वर्णन हो और नाना प्रकार के संदेह मिटाये गये हों उसका नाम कवित्व है ॥४७॥ जिससे पश्चात्ताप उपजे, और लौकिक विषय लजित हों, तथा जिससे ज्ञान का बोध होउसका नाम कवित्व है ॥४८॥ जिससे ज्ञान प्रबल हो, वृत्ति का अस्त हो और भक्तिमार्ग मालूम हो वही कविता है ॥४६॥ जिससे देहाभिमान नष्ट हो, भवसागर सूख जाय, और भगवान् हृदय प्रगट हो वही कविता है ॥ ५० ॥ जिससे सद्बुद्धि प्राप्त हो, पाखंड का नाश हो और विवेक जागृत हो वही सच्चा काव्य है ॥ ५१ ॥ जिससे सवस्तु का भास हो; जिससे भास का निरास हो और जिससे भिन्नत्व का नाश हो वही कवित्व है ॥ ५२ ॥ जिससे समाधान हो, जिससे संसार-वन्धन टूटै और जिसे सज्जन मानते हों वही कवित्व है ॥ ५३ ॥ इस प्रकार काव्य के लक्षण यदि बतलाये जायँ तो बहुत है; पर यहां साधारण तौर पर जान लेने के . लिए थोड़े से बतला दिये गये हैं ॥ ५४॥ चौथा समास-कीर्तन-लक्षण । ॥ श्रीराम ॥ कलियुग में 'कीर्तन' करना चाहिए और भगवान् के गुण मधुर शब्दों में बड़ी कुशलता के साथ, गाना चाहिये । परन्तु कीर्तन में कठिन और कर्कश वचन न निकालना चाहिए ॥१॥ कीर्तन के द्वारा संसार की सारी खटपट मिटा देनी चाहिए; दुष्टों से झगड़ा न करना चाहिए और सच- झूठ से अपनी शान्ति भंग न होने देना चाहिए ॥२॥ गर्वगीतं न गाना चाहिये, गाते गाते कना न चाहिए और गौप्य या गुह्य प्रकट न करना चाहिए; भगवान् के गुण गाना चाहिए ॥ ३॥ कीर्तन करने में बहुत हिलना डोलना या खांसना न चाहिए ॥४॥ भगवान् के अनन्त नाम, . सगुण ईश्वर के अनेक ध्यान और भगवत्कीर्ति के अनेक अद्भुत चमत्कार कीर्तन में प्रकट करना चाहिये ॥ ५॥ कीर्तन में कोई अच्छी बात छोड़ना न चाहिए और बुरी बात छेड़ना न चाहिए । तथा ऐसी बात न करना चाहिए कि, जिससे किसीका मन खिन्न हो ॥ ६॥ कीर्तन के द्वारा