पृष्ठ:दासबोध.pdf/४६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दासबोध। [ दशक १५ से छिपा बैठा है। देवालय को पूजने से (देह को भोग देने से ) उसको (आत्मा को ) मिलता है (संतोष होता है ) सृष्टि के सभी देहधारियों का यही नियम है ॥ ३ ॥ 'प्रकृति' और 'पुरुष, दो नाम लोगों ने मान लिये हैं, पर वास्तव में हैं चे दोनों एक ही। यह वात विवेक और अनु- भव से देखने पर मालूम हो जाती है ॥ ४॥ वहां न पुरुष है न स्त्री है; वास्तव यह लोगों की कल्पना है। अच्छी तरह से खोजने पर कुछ भी नहीं है ॥ ५॥ सब लोग नदी को स्त्री और नाले को पुरुप कहते हैं; पर विचार करने से स्पष्ट है कि, वहां स्त्री-पुरुष किसीकी देह नहीं है, केवल पानी दोनों में बहता है ॥ ६ ॥ अपना अपने को जान नहीं पड़ता, देखने से आकलन नहीं होता । बहुत होने पर भी किसीको कुछ नहीं मिलता ॥ ७॥ अकेला होकर भी बहुत हुश्रा है और बहुत होकर भी अकेला ही रह गया है। अपना गड़बड़ अपने ही से नहीं सहा जाता* ॥८॥ वह विचित्र चेतनाशक्ति एक होकर भी विखरी हुई है और विखरी होकर भी एक ही है-वह प्राणिमात्र में व्याप्त है ॥ ६॥ बेलि में जल, न दिखते हुए, संचार किया करता है। कुछ भी किया जाय वह विना गीलेपन के नहीं ठहर सकती ॥१०॥ पेड़ों में यद्यपि थाले बाँधे जाते हैं; पर तो भी पेड़ अपनी इच्छा के अनुसार बढ़ते हैं; कोई कोई पेड़ तो आकाश में उड़ जाते हैं ! ॥ ११॥ यद्यपि ये वृक्ष भूमि से अलग रहते हैं पर तो भी वे सूखते नहीं । जहां रहते हैं वहीं वे खूब बढ़ते हैं ॥ १२ ॥ अंतरात्मा के द्वारा वृक्ष वर्तते हैं; अंतरात्मा न रहने से वहीं वृक्ष जड़ लकड़ हो जाते हैं। यह बात प्रत्यक्ष ही है। इसमें कुछ गूढ़ रहस्य नहीं ॥१३॥ कभी कभी तो वृक्षों से भी वृक्ष होते हैं और वे भी आकाश की ओर जाते हैं। उनकी जड़ पृथ्वी में कभी नहीं रहती ॥ १४ ॥ वृक्षों को वृक्षों का ही खादपानी देकर प्रति दिन उनका पालन किया जाता है । बोलनेवाले वृत शब्दसंघर्षण से विचार करते हैं ॥ १५ ॥ होना था सो पहले ही हो चुका है। इसके बाद कल्पना कर करके लोग अपने इच्छानुसार बोलते रहते हैं; पर जो ज्ञाता पुरुष. हैं वे सब कुछ जानते हैं ॥ १६ ॥ यदि समझ गया तो उमगता नहीं और यदि उमग गया तो समझता नहीं-अनुभव बिना कोई बात अनुमान में नहीं आती ॥ १७ ॥ पहले पहल यही विचार करना चाहिए कि, सब का उत्पत्तिकर्ता कौन

  • परब्रह्म एक होकर “सर्वव्यापी है और सर्वव्यापी होकर एक है। माया की उपाधि

उसीकी है; तिस पर भी माया उसे सहन नहीं होती !