समास ] विशिष्ट चातुर्य । दहुतों की बातों में लगते हैं वे सन्देह में इवते हैं और अनुभवात्मक मुख्य निश्चय भूल जाते हैं ॥ १०॥ बहुतों की बहुत सी बातें सुनना जाहिणः पर उन सब का अनुभव से विचार करना चाहिए और फिर सत्र मृत का निपटेरा अपने मन में करना चाहिए ॥११॥ किसीसे इन्कार न करना चाहिए, उपाय या अपाय समझ कर अनुभव लेना त्राहिए। बहुत बोलने से (वक बक करने से) क्या लाभ ? ॥ १२ ॥ चाहे हठी दुराग्रही और कच्चा मनुष्य ही क्यों न हो; पर उसकी भी बात मानना चाहिए । इस प्रकार (अपने वर्ताव से ) सब का मन प्रसन्न रखना चाहिए ॥ १३॥ जिसके मन में ऐंठ, द्वेष या मेल है, और वह उन्हींको बहुत बढ़ाता भी है, उसे चतुर कैसे कह सकते हैं? ऐसा मनुष्य दूसरों को सन्तुष्ट रखना नहीं जानता ॥१४॥ जो मूखों को चतुर बनाता है उसीका जीना सार्थक है । व्यर्थ के लिए वाद बढ़ाना मूर्खता है ॥ १५॥ लोगों में मिल कर उनको मिलाना चाहिए (उनको अपने विचार के अनुकूल करना चाहिए;) पड़ कर उलटाना चाहिए और विवेक-चल से अपने मन का भेद नहीं मालूम होने देना चाहिए ॥ १६ ॥ दूसरे की चाल के अनुसार चलना चाहिए, दूसरे के बोलने के अनुसार बोलना चाहिए और दूसरे के मनोगत में मिल जाना चाहिए ! ॥ १७ ॥ जो दूसरों का हित चाहता है वह उनके विरुद्ध कुछ भी नहीं करता- वह राजी-राजी से दूसरों का मन अपने अनुकूल कर लेता है ॥ १८ ॥ पहले उनका मन अपने हाथ में लाना चाहिए; फिर धीरे धीरे अपना उद्देश उनके मन में भरना चाहिए; इस प्रकार नाना उपायों से दूसरे लोगों को अपने हाथ में लाना चाहिए ॥ १६॥ हठी को हठी मिलने से गड़बड़ मचता है और फिर कलह उठने पर चातुर्य को स्थान कहां मिल सकता है ? ॥ २० ॥ व्यर्थ बड़बड़ करते हैं, पर कर दिखाना अवघड़ है। दूसरे का मन अपने अनुकूल करना बहुत कठिन बात है ॥ २१ ॥ धक्के और चपेटे (कट) सहना चाहिए; नीच शब्द सहते रहना चाहिए; ( इतना सहने के बाद) पछता कर दूसरे (लोग) अपने हो जाते हैं ..॥ २२ ॥ प्रसंग देख कर बोलना चाहिए, ज्ञातापन (का अभिमान अपनी ओर) बिलकुल न लेना चाहिए और जहां जाय वहां मिलाप रख कर, प्रेमपूर्वक, जाना चाहिए ॥ २३ ॥ कुग्राम (दुर्गम वासस्थल )अथवा नगर, और घरों के भीतर के भी घर, छोटे बड़े सब, भिक्षा के मिस से, छान डालना चाहिए ॥ २४ ॥ (धूमने से) बहुतों में कुछ न कुछ मिल ही जाता है-विचक्षण लोगों से मित्रता होती है; पर खाली बैठे रहने से,