पृष्ठ:दासबोध.pdf/४९८

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समास ९] उपासना-निरूपण। ४१६ वह सारे पत्तों को मिल जाता है॥ ६॥ वत्ता कहता है कि, तुलसी के वृक्ष पर लोटा भर पानी डालने से ऊपर तो पल भर भी नहीं ठहरता; किन्तु भूमि में ही भिद जाता है ॥ ७ ॥ ( इस पर श्रोता कहता है कि,)

बड़े वृक्ष के लिए कैसा करें? चोटी पर पात्र कैसे ले जायँ ? हे देव, इसका

अभिप्राय भी मुझे बतलाइये॥८॥उ०:-मेह का जितना पानी गिरता है वह सारा मूल की ही ओर आता है ! वहां हाय ही नहीं पहुँचता; क्या किया जाय ? ॥ ६ ॥ इतना पुण्य कहां से हो सकता है कि, सव मूल मिल जाय ? विवेक से साधुओं का मन वहां तक पहुँचता है ॥१०॥ तथापि जिस प्रकार वृक्ष पर पानी डालने से वह मूल तक पहुँच ही जाता है उसी प्रकार सब जगत् की सेवा करने से वह परमात्मा को प्राप्त हो जाती है ॥ ११ ॥ श्रोता कहता है कि पिछली शंका मिट गई। अब यह बतलाइये कि, सगुण को निर्गुण कैसे कह सकते हैं ॥ १२ ॥ क्योंकि जितना कुछ चंच- लता से विकारयुचर है वह सगुण है और वाकी गुणातीत या निर्गुणं है - ॥ १३ ॥ वक्ता कहता है कि, यह बात जानने के लिए सारासार का विचार करना चाहिए। अन्तःकरण में निर्धार हो जाने पर फिर नास भी नहीं रहता ॥ १४ ॥ मान लो कि, एक विवेकवान् पुरुष, जो मुख्य राजा के समान है, और दूसरा एक सेवक है जिसका नाम मात्र राजा' है-अब दोनों का अन्तर समझो । विवाद करना व्यर्थ है ॥ १५॥ कल्पान्त- प्रलय में जो बच रहता है उसीको 'निर्गुण' कहते हैं और बाकी सभी माया में आ जाता है ॥ १६ ॥ सेना, शहर, बाजार और नाना प्रकार की छोटी बड़ी यात्राओं में अपार शब्द उठते हैं; पर उन्हें अलग कैसे कर सकते हैं ? ॥ १७ ॥ वर्षाऋतु में ठीक आधी रात होने पर नाना जीव बोलते हैं। पर उन सब का शब्द अलग अलग कैसे जाना जाय? ॥१८॥ भूमंडल में असंख्य नाना प्रकार के देश, भाषा और मत है, बहुत ऋपियों के भी बहुत मत हैं, वे सब कैसे जाने जायँ ? ॥ १६ ॥ वृष्टि होते ही सृष्टि में अपार अंकुर निकलते हैं; उनके अनेक छोटे-बड़े वृक्ष कैसे अलग अलग किये जायें ? ॥२०॥ खेचरों, भूचरों और जलचरों के नाना प्रकार के शरीर नाना रंगों के और चित्रविचित्र होते हैं वे सब कैसे जाने जाय? ॥२१॥दृश्य किस प्रकार प्रकट हुआ है, नाना प्रकार से कैसे विकृत हुश्रा है; अनन्त कैसे फैला हुआ है-यह सब कैसे जाना जाय ? ॥२२॥ आकाश में गंधर्वनगर हैं, उनमें नाना रंग के छोटी बड़ी बहुत सी व्यक्कियां, वहुत प्रकार से, रहती हैं उन्हें कैसे जाने ? ॥ २३ ॥ रात दिन के भेद, चांदनी ,