पृष्ठ:दासबोध.pdf/४९९

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४२० दासबोध । [ दशक १६ और अंधकार, विचार और अविचार कैसे जाने जायँ ? ॥ २४ ॥ स्मरण और विस्मरण, व्यस्तता और अव्यस्तता, प्रतीति और अनुसान का भी यही हाल है ॥ २५ ॥ न्याय और अन्याय, हां और नाहीं ये सब विवेक के विना कैसे मालूम हो सकते हैं ? ॥ २६ ॥ कार्यकर्ता और निकम्मा, शूर और डरपोक, धर्मी और अधर्मी मालूम होना चाहिए ॥ २७॥ धनाढ्य और दिवालिया, साव और चोर, सच और झूठ मालूम होना चाहिए ॥ २८ ॥ श्रेष्ठ और कनिष्ठ, भ्रष्ट और' अन्तर्निष्ठ तथा सारासार-विचार स्पष्ट मालूम होना चाहिए ॥२६॥ दसवाँ समास-त्रिगुण और पञ्चभूत। ॥ श्रीराम ॥ पंचभूतों से जगत् चलता है, यह सारा पंचभूतों का पसारा है। पंच- भूत चले जाने पर फिर क्या रह जाता है ? ॥१॥ श्रोता वक्ता से कहता • है कि भूतों की तो इतनी महिमा बढ़ा दी, पर हे स्वामी, यह तो बतला- इये कि, त्रिगुण कहां गये? ॥२॥ उत्तरः-अंतरात्मा पांचवाँ भूत है, त्रिगुण उसके अंगभूत हैं । इस बात का विचार, सावधानचित्त से, अच्छी तरह करो ॥३॥ जितना कुछ हुआ है उसे भूत कहते हैं, उसी हुए में निगुण भी आ गये । इतने ही से आशंका की जड़ कट जाती है ॥ ४॥ भूतों से भिन्न कुछ नहीं है, यह सब कुछ भूतों से ही उत्पन्न है। एक के बिना एक कभी नहीं हो सकता ॥ ५॥ कहते हैं कि श्रात्मा से पवन होता है, पवन से अग्नि होता है और अग्नि से जीवन (जल.) होता है ॥ ६ ॥ जल सूर्य के द्वारा जम कर, अग्नि और वायु के योग से, भूमंडल पन जाता है ॥ ७॥ अग्नि, वायु और रवि यदि न होता तो बहुत शीतलता रहती। परन्तु शीतलता में भी उष्णता रहती है. ॥८॥ परमात्मा ने यह सब विचित्र संसार रचा है। सम्पूर्ण देहधारी उसीसे हुए हैं ॥ ६॥ यदि कहीं सब शीतल ही शीतल होता तो भी सारे प्राणी मर जाते । अथवा सारी उष्णता ही होने से भी सब संसार सूख जाता ॥१०॥ अस्तु । जब भूमंडल सूर्य के किरणों से जम गया तब परमात्मा ने :और-और उपाय रचे ॥ ११॥ अर्थात् वर्षाऋतु बनाई, जिससे भूमंडल ठंढा हुश्रा । इसके बाद कुछ उष्ण और कुछ शीतल शीतकाल की रचना हुई ॥ १२॥ जन शीतकाल में लोग कष्टी होने लगे और वृक्ष आदि सूखने लगे तब