पृष्ठ:दासबोध.pdf/५०४

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समान २] शिवशनि-निरूपण। ४२५ नहीं ॥ १६॥ स्यूल का मूल बासना है, वह वासना पहले तो दिखती ही नहीं है। स्थल के बिना किसीका भी अनुमान नहीं हो सकता ॥ २७॥ वेदशास्त्र कहते हैं कि, कल्पना ले सृष्टि बनी है। पर (कल्पना) दिन्द नहीं पड़ती, इस कारण उसे मिथ्या न कहना चाहिए ॥ १८ ॥ उन एक एक जन्म का पड़दा पड़ गया है (अर्थात् जितने जन्म मिले हैं उतने ही पड़दे पड़ गये हैं) तव फिर सत्य-विचार कैसे मालम हो सकता है ? निश्चित बातें ऐसी ही गूढ़ होती हैं और गढ़त्व ही निश्चय सा ठौर है ॥ १६ ॥ सम्पूर्ण पुरुषों और स्त्रियों के जीव, लब एक ही है। परन्तु देह-स्वभाव अलग अलग ॥ २०॥ इसी लिए स्त्री को स्त्री की श्रावश्यकता नहीं होती। अस्तु । पिंड से ब्रह्मांड-बीज का निश्चय करना चाहिए ॥ २१ ॥ स्त्री का मन पुरुप पर और पुरुष का मन स्त्री पर जाता है। यह वासना का हाल भूल हो से 'चला आता है ॥ २२ ॥ वासना अादिही से अभेद है, देह-सम्बन्ध से भेद हो जाता है और देह का सम्बन्ध हट जाने पर भेद भी चला जाता है ॥ २३ ॥ नरनारी का मूल शिवशक्ति में है। जन्म लेने से यह बात अच्छी तरह मालूम हो जाती है ॥ २४॥ नाना प्रीति की वासनाएं एक की दूसरे को नहीं मालूम होती। तीक्ष्ण दृष्टि से कुछ थोड़ी अनुसान में आती हैं ॥ २५ ॥ बालक को उसकी मा पालती-पोसती है, यह काम पुरुष से नहीं हो सकता। उपाधि बनिता ले ही बढ़ती है ॥ २६ ॥ (माता को बालक के पालने में ) घृणा, श्रम, आलस और थकावट नहीं आती। माता को छोड़ कर (वालक पर) इतना मोह और किसीका नहीं होता ॥ २७ ॥ नाना प्रकार की उपाधि बढ़ाना वह जानती है, नाना प्रकार के मोह से फँसाना वह जानती है और नाना प्रकार के प्रपंच की नाना प्रकार की प्रीति लगाना भी वही जानती है ॥ २८ ॥ पुरुष को स्त्री का विश्वास होता है और स्त्री को पुरुष से सन्तोप होता है-दोनों को परस्पर वासना ने बाँध डाला है ॥ २६ ॥ ईश्वर ने एक ऐसा बड़ा जाल बना रखा है कि, जिसमें मनुष्यमात्र फंसे हुए हैं और मोह का ऐसा गूंथ बना रखा है कि, जो किसीले छूटता नहीं ॥ ३० ॥ इस प्रकार स्त्री-पुरुष में परस्पर महा प्रीति होती है। यह (प्रीति ) सनातन से (मूलमाया से),अादि ही से, चली आती है। विवेक से प्रत्यक्ष देखना चाहिए ॥ ३१ ॥ श्रादि में सूक्ष्म उत्पन्न होता है फिर, इसके बाद, वह ( सूक्ष्म ) स्पष्ट दिखने लगता है। दोनों के द्वारा उत्पत्ति का काम चलता है.॥ ३२ ॥ वास्तव में शिवशक्ति ही मूल मैं थी, आगे वधू-वर हुए; जो चौरासी लाख योनियों के विस्तार में