पृष्ठ:दासबोध.pdf/५२६

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४४७ समास ४] नरदेह का महत्व। के कारण लोग छोटे या बड़े होते हैं ।। २५॥ जितने जीव देह धर कर पाते हैं वे कुछ न कुछ कर ही जाते हैं । हरिभजन से कितने ही पावन हो चुके हैं॥२६॥श्रष्टया प्रकृति का मूल केवल संकल्प-रूप ही है । नाना संकल्प ही देहरूप फल लेकर प्रकट हुए हैं ॥ २७ ॥ हरिसंकल्प आदि ही से था, उसीको अव फल के रूप में देखना चाहिए । वास्तव में वह नाना देहों मैं ढूँढ़ने से मालूम होता है ॥ २८ ॥ वेल के मूल में वीज' होता है, सम्पूर्ण बैल उदकरूप होती है, फिर आगे फल में भी मूल के अंश से बीज रहता है ॥ २६ ॥ मूल के कारण फल आता है, फल के कारण मूल होता है, यही हाल सम्पूर्ण ब्रह्मांड का है ॥ ३० ॥ अस्तु । कोई भी काम हो, दिना देह के कैसे हो सकता है ? देह सार्थक करना अच्छा है ॥३१॥आत्मा के कारण देह हुआ है और देह के कारण आत्मा वर्त रहा है-दोनों के योग से सम्पूर्ण कार्य चलता है ॥ ३२ ॥ छिपकर, गुप्तरूप से जो कुछ किया जाता है वह सब आत्मा को मालूम हो जाता है । क्योंकि सब कर्तृत्व आत्मा ही से है ॥३३॥ देह में आत्मा रहता है। देह पूजने से आत्मा संतुष्ट होता है और देह को पीड़ा देने से आत्मा क्षोभित होता है। यह वात प्रत्यक्ष है ॥ ३४ ॥ देहविना पूजा मिलती नहीं, देह विना पूजा लगती नहीं; जनों (लोगों) में ही जनार्दन (परमेश्वर) रहता है; इस लिए लोगों को संतुष्ट करना चाहिए ॥ ३५ ॥ जो अत्यन्त विवेक- वान् होता है उसीके द्वारा धर्मस्थापना हो सकती शरीर पूजनीय है ॥ ३६॥ सब की वरावर ही पूजा करना मूर्खता है। गधे की पूजा करने से क्या फल है ? ॥३६॥ इस लिए जो वास्तव में पूज- नीय हो उसीकी पूजा करना चाहिए; तथापि अन्य लोगों को भी, साधा- रण तौर पर, प्रसन्न ही रखना चाहिए क्योंकि किसीका दिल न दुखाना चाहिए ॥ ३८ ॥ सारे जगत् के हृदय का देव (अर्थात् सम्पूर्ण जन- समाज) क्षुब्ध होने से रहने को ठौर कहां मिल सकता है? लोगों को छोड़ कर लोगों के लिए अन्य गति ही नहीं है ॥ ३६॥ परमेश्वर के अनन्त गुण हैं। मनुष्य विचारा उनकी पहचान कहां तक बतला सकता है ? परन्तु अध्यात्म-ग्रन्यों का श्रवण होने से सब समझ पड़ने लगता है ॥ ४०॥ और वही पुण्य-