पृष्ठ:दासबोध.pdf/५२७

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दासबोध । [ दशक १८ पाँचवाँ समास-समाधान की युक्ति। ॥ श्रीराम ।। कोई पदार्थ किसी माप से मापिये; पर वह माप पदार्थ नहीं खाता, इसी प्रकार बहुधा लोग अनेक ग्रन्थ पढ़ जाते हैं, परन्तु उनके हृदय में उन अन्धों का एक भी विचार नहीं रहता ॥१॥ पाठ तो धाराप्रवाही बोलते जाते हैं। पर यदि पूछिये तो बतलाते कुछ नहीं अनुभव की बात पूछने पर वे लोग चक्कर में आ जाते हैं ॥२॥ (परन्तु ऐसा नहीं चाहिए) शब्दरत्नों की परीक्षा करनी चाहिए; अनुभवात्मक शब्दों का ग्रहण करना चाहिए; और अन्य सटर-फटर एक तरफ छोड़ देना चाहिए ॥३॥ नामरूप सब छोड़ देना चाहिए, फिर अनुभव प्राप्त करना चाहिए, सार-- असार दोनों एक ही करना मूर्खता है ॥ ४॥ इस बात का विचार करो कि, पढ़नेवाले को पुस्तक यों ही पढ़ते जाना चाहिए या समझ कर पढ़ना चाहिए ? ॥ ५॥ सच तो यह है कि जहां समझ नहीं है वहां सारा गड़बड़ रहता है। वे समझ वक्ता कोई बात पूछने पर उसका ठीक समाधान नहीं कर सकता और उलटे क्रोध करता है ॥ ६॥ विना समझे-बूझे यदि बहुत सा शब्दक्षान कर लिया जाता है, तो किसी सभा- समाज में, शास्त्रार्थ का प्रसंग श्रा जाने पर, उसका कुछ उपयोग नहीं होता ॥ ७ ॥ चक्की में जल्दी जल्दी अनाज की मुट्ठी डाल कर पीसने से वारीक आटा कैसे निकल सकता है ? ॥८॥ मुह में एक के पीछे एक, जल्दी जल्दी से कौर डालते गये; चबाने को अवकाश नहीं मिला; और सारा मुहँ मर गया; फिराये नहीं फिरता! अव कैसा हो? ॥ ६ ॥ अस्तु; अव यह सुनो कि, सभा में व्याख्याता का क्या कर्तव्य है। व्याख्याता को एक क्षण भर भी श्रोताओं का विरस न करना चाहिए, सब का अन्तःकरण सम्हालते रहना चाहिए ॥ १० ॥ सूक्ष्म बातें अवश्य प्रकट करना चाहिए; परन्तु उन्हें स्वयं सम- झना चाहिए और समझ कर फिर श्रोताओं को समझाना चाहिए ॥ ११ ॥ सभा से वक्ता जव बड़े बड़े कठिन प्रश्न हल कर देता है तब श्रोताओं को बड़ा आनन्द होता है और वे वारबार वक्ता की प्रशंसा करते हैं ॥ १२॥ कठिन समस्या हल कर देने पर वे प्रशंसा करते हैं; परन्तु यदि उस प्रसंग पर वक्ता समस्या हल नहीं कर सकता (घबड़ाता है) तो श्रोता लोग निन्दा भी करते हैं। अब, यदि वक्ता श्रोताओं पर