पृष्ठ:दासबोध.pdf/५४

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संक्षिप्त विषय-वर्णन. बातें जाननी चाहिए, किस प्रकार चतुराई के साथ लोगों के अन्तःकरणं का हाल जान कर उनको अपने समुदाय में मिलना चाहिए और कठिन प्रसंग आ पड़ने पर किस प्रकार उसका निर्वाह करना चाहिए, इत्यादि अनेक महत्त्व की बातें बतलाई हैं। इसी दशक के अन्त में साधारण उपदेश बतलाकर विशेषता के साथ यह बतलाया है कि निस्पृह लोगों का वर्ताव जन-समाज के साथ कैसा होना चाहिए। इस शिक्षा का सार नीचे लिखे हुए दो पद्यों में भरा है:- उत्तम गुण तितुके ध्यावे । घेऊन जनास सिकवावे। : महंत महंत करावे । युक्ति बुद्धीने भरावे। जाणते करून विसरावे । नाना देसी ॥ २५ ॥ तात्पर्य, सारे उत्तम गुण पहले स्वयं ग्रहण करके तब लोग को सिखाना चाहिए। महन्तों को चाहिए कि वे अपने समान अनेक महन्त (निस्पृह पुरुष ) तैयार करें, उन्हें युक्ति और बुद्धि का निधान बनावें । इस प्रकार अनेक ज्ञाता तैयार करके नाना देशों में-जाना प्रान्तों में उन्हें भेजना चाहिए। क्यों भेजना चाहिए ये भी यही काम करें। इस प्रकार क्रमशः जगदुद्धार हो जायेगा । एक दृष्टि से यह समास और भी बड़े महत्त्व का है। इसमें श्रीसमर्थ ने जो कुछ कहा है वह खयं पहले उन्होंने किया है और तब उसका अनुकरण करने के लिए लोगों को उपदेश दिया है। इस लिए उसके सिद्धान्त बिलकुल पके है। अस्तु । बारहवें दशक में विवेक और वैराग्य का बहुत ही उत्तम विवेचन किया गया है। श्रीसमर्थ ने विवेक का महत्व बहुत कुछ बतलाया है। क्या ऐहिक और क्या पारमार्थिक किसी भी प्रकार के सुख की प्राप्ति के लिए विवेक के विना.सन्न उपाय निष्फल होते हैं । “ विवेक पाहिल्यावीण 1 जो जो उपाव तो तो सीण । यह बात सच है कि जब तक विषयों के सम्बन्ध में वैराग्य उत्पन्न न होगा तब तक ज्ञान का लाभ नहीं हो सकता । परन्तु यह वैराग्य विवेकयुक्त होना चाहिए। यदि वैराय के साथ विवक न हो तो अनर्थ के सिवा कोई लाभ नहीं- न तो प्रापंचिक सुख होगा और न पारमार्थिका विकेंचीण वैराग्य केलें। तरी अविवेकै अनर्थी घातलें। अवघे व्यर्थचि गेलें। दोहींकडे । १२-४-६ तेरहवें दशक में आत्मानात्म-विवेक, सारासारनिरूपण, उत्पत्ति और प्रयत्न का वर्णन किया है । इसी दशक के छठवें समास में लघुवोध है । इसमें समर्थ की शिक्षा का' सारांश है । इतिहासज्ञों का अनुमान है कि श्रीरामदासस्वामी ने यही लघुबोध शिवाजी को बतलाया था। चौदहवें दशक में फिर निस्पृह' के लक्षण बतला कर भिक्षा, कवित्व कला, कीर्तन- लक्षण, हरि कथा-निरूपण और चातुर्य-लक्षण बतलाये हैं। इसके बाद युग-धर्म नाम के "