पृष्ठ:दासबोध.pdf/५४६

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दासबोध। [ दशक १९ हैं और इधर उधर भ्रमण करके क्षेत्रों के देवताओं का दर्शन करते हैं ॥१८॥ अथवा नाना अवतारों की ही कथा सुन कर अपना निश्चय करते हैं; परन्तु उसका बड़ा विस्तार है ॥ १६॥ कोई ब्रह्मा, विष्णु, महेश की कथा सुन कर उन्हींको बड़ा मानते हैं। परन्तु सब से पहले उस गुणा- तीत जगदीश को देखना चाहिए ॥२०॥ परन्तु उस जगदीश्वर का तो कहीं ठौर-ठिकाना ही नहीं है; भजन किया जाय तो कहां? यह बड़े सन्देह की बात है ॥ २१ ॥ जब उस परमात्मा का दर्शन ही नहीं कर सकते तब पवित्र कैसे होंगे? अतएव साधु लोग, जो सब जानते हैं, उन्हें धन्य है ॥ २२ ॥ पृथ्वीमण्डल में अनेक देवता हैं; उन पर अविश्वास किया नहीं जा सकता और इधर मुख्य देवता, (परमात्मा ) अनेक प्रयत्न करने पर भी, मालूम नहीं होता ॥ २३ ॥ तो, कार्य (माया, दृश्य ) को अलग करके, तब उस परमात्मा को देखना चाहिए; तभी कुछ गोप्य या गुह्य मालूम हो सकता है ॥ २४ ॥ वह न दिखता है न भासता है, वह कल्पान्त' में भी नाश नहीं होता और सुकृत के बिना उस पर मन विश्वास नहीं करता ॥ २५॥ कल्पना बहुत तर्कना करती है, वासना बहुत इच्छा करती है और अतःकरण में नाना तरंगें उठती हैं ॥ २६ ॥ इस लिए जो कल्पना-रहित है वही वस्तु शाश्वत है, उसका अन्त नहीं है, इसी लिए उसे अनंत कहते हैं ॥ २७ ॥ उसे ज्ञान-द्रष्टि से देखना चाहिए, देख कर वहीं रहना चाहिए, निदिध्यास तथा संगत्याग से तद्रूप होना चाहिए ॥२८॥ उसकी अनन्त लीलाएं और अनेक विचित्रताएं यह विचारा जुद्र जीव स्या जान सकता है? परन्तु सन्तसमागम से, स्वानुभव होने पर, वह स्थिति प्राप्त होती है ॥ २६ ॥ और उस स्थिति के प्राप्त होने पर अधोगति मिट जाती है । इस प्रकार सद्गुरु की सेवा से तत्काल सद्गति मिलती है ॥ ३०॥ छठवाँ समास-बुद्धिवाद। ॥ श्रीराम ॥ परमार्थी और विवेकी पुरुष का कार्य सब को पसन्द आता है; क्योंकि वह सब काम विचारपूर्वक करता है और भूल नहीं पड़ने देता ॥१॥ जो बात लोगों को पसन्द नहीं आती वह बात उक्त पुरुप कभी करता ही नहीं। वह श्रादि से अन्त तक, सब बातें समझ लेता है