पृष्ठ:दासबोध.pdf/५४८

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100 दासबोध । [ दशक १९ प्रभावशाली उपदेश करना चाहिए ॥ १८ ॥ दुर्जनों को सँभालना, सज्जनों को प्रसन्न करना और सब के मन की बात, जैसी की तैसी, जानना चाहिए ॥ १६॥ ऐसे साधु पुरुप को संगति से लोग सदा- चरणी बनते हैं-उनमें उत्तम गुणों का तत्काल ही उत्थान होता है और सारा समुदाय, अखंड रीति से, अभ्यास में जुटता है ॥ २० ॥ वह पुरुष जहां जाता है वहीं नित्य नया लगता है, लोगों का मन चाहता है कि, यह यहीं बना रहे । परन्तु वह स्वयं लालच नहीं आने देता ॥ २१ ॥ उत्कट भकि, उत्कट शान, उत्कट चातुर्य, उत्कट भजन, और उत्कट योग- अनुष्टान, आदि सभी उत्कट गुणों का वह जगह जगह प्रचार करता रहता है ॥ २२ ॥ जो उत्कट निस्पृहता धारण करता है उसकी कीर्ति दिदिगांतर में फैलती है और उत्कट भक्ति से सारे देश का जन-समूह शान्ति प्राप्त करता है ।। २३ ॥ कुछ न कुछ उत्कट बात जब तक मनुष्य में न होगी तब तक कीर्ति कदापि नहीं फैल सकती। व्यर्थ बन बन घूमने से क्या होता है ? ॥ २४ ॥ देह का कुछ भरोसा नहीं है, न जाने कब उम्र व्यतीत हो जाय; कौन जानता है कि, आगे कैसा प्रसंग (इस शरीर पर ) आ पड़ेगा? ॥ २५ ॥ इस कारण सावधान रहना चाहिए, जितना अपने से हो सके उतना, जी जान तोड़ कर, परोपकार करना चाहिए और भगवत्कोर्ति से भूमंडल भर देना चाहिए ॥ २६ ॥ अपने को जो कुछ अनुकूल हो, वह सब तत्काल-उसी दम-करना चाहिए और जो बात अपने से न हो सके उसे विमल विवेक से सोचना चाहिए ॥ २७ ॥ क्योंकि ऐसी तो कोई बात नहीं है जो विवेक में न श्रा सकती हो-एकान्त में विवेक प्रत्येक वात को अनुमान में ले ही आता है ॥२८॥ जहां अखंड रीति से अनेक तजवीजें' और 'चेष्टायें होती रहती है वहां कमो किस बात की? बिना एकान्त के मनुष्य की बुद्धि उपयोग में कैसे आ सकती है ? ॥२६॥ अतएव, एकान्त में विवेक करना चाहिए, आत्माराम को पहचानना चाहिए-यहां से वहां तक किसी प्रकार का गड़बड़ नहीं है । ॥३०॥ सातवाँ समास-प्रयत्नवाद । || श्रीराम ॥ हरिकथा की धूम लोगों में मचा देना चाहिए, और अध्यात्म-निरूपण