पृष्ठ:दासबोध.pdf/५६०

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४८२ दासबोध । [ दशक २० परा वाचा स्फुरणरूप होती है वैसी ही उसकी भी स्थिति है ॥ १६ ॥ अष्टधा प्रकृति का मूल यह केवल मूलमाया ही है, सव वीज सूक्ष्मरूप से आदि से ही मूलमाया में हैं ॥ २० ॥ वह जड़ पदार्थों को चेतना देती है, इस लिये उसे चैतन्य कहते हैं । सूक्ष्मरूप से, सब लक्षण समस लेने चाहिए ॥२६॥ प्रकृतिपुरुष, अर्धनारीनटेश्वर और अष्टधा प्रकृति, इत्यादि सब वही है ॥ २२ ॥ त्रिगुण गुप्त रूप से उसीमें रहते हैं, इसी लिए उसे महत्तत्व कहते हैं । शुद्ध सत्वगुण भी गुप्तरूप से उसीमें होता है ॥ २३ ॥ जोकि, उससे तीन गुण प्रकट होते हैं, इस लिए उसे गुण- क्षोभिणी कहते हैं। उन साधुओं को धन्य है जो त्रिगुणों के रूप समझते हैं ॥ २४ ॥ जो कि, समान गुण रहते हैं, इसलिए उसे गुणसाम्य कहते हैं । यह सूक्ष्म विचार बहुत थोड़े लोग जानते हैं ॥ २५ ॥ इस प्रकार त्रिगुण मूलमाया से हुए हैं। परन्तु वे चंचल और एकदेशीय है। यह वात अनुभव से सालूम हो जाती है ॥ २६ ॥ इसके बाद पंचभूतों का महा विस्तार हुअा है । सप्तद्वीप और नवखंड वसुंधरा सब उसी विस्तार में है ॥ २७ ॥ ऐसे सृष्टि के ये दो प्रकार, अर्थात् त्रिगुण और पंचभूत हुए। अब तीसरा प्रकार सुनो ॥ २८ ॥ पृथ्वी नाना पदार्थों का बीज है। अंडज, जारज, खेदज और उद्भिज, ये चार खानि और चार वाणी खाभाविक इसीसे निर्माण हुई ॥ २६ ॥ चार खानि और चार वाणी होती जाती है; पर पृथ्वी वैसी ही बनी है । इस प्रकार अनेक प्राणी होते हैं और चले जाते हैं ॥ ३०॥ तीसरा समास--सूक्ष्म विचार । ॥ श्रीराम ।। आदि से अन्त तक नाना प्रकार का विस्तार कहा है। उसका मनन करते करते फिर वृत्ति को पीछे लौटाना चाहिए ॥ १॥ चार वाणी, चार खानि, चौरासी लाख जीवयोनि और नाना प्रकार के प्राणी जन्मते हैं ॥२॥ सव पृथ्वी से होते हैं और पृथ्वी ही में मिल जाते हैं। इस प्रकार अनेक आते जाते हैं; पर पृथ्वी वैसी ही है ॥३॥ यह तो चोटी की तरफ का भाग हुना। दूसरा भाग भूतों का गड़बड़ है। तीसरे भाग में अनेक सूक्ष्म नामरूप हैं ॥ ४॥ स्थूल सब छोड़ देना चाहिए, सुक्ष्म रूपों को पहचानना चाहिए-त्रिगुण के पहले का सूक्ष्म दृष्टि से बारबार विचार