पृष्ठ:दासबोध.pdf/५६१

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समास ३ ] सूक्ष्म विचार । करना चाहिए ॥ ५ ॥ चेतनाचेतन गुणों के रूप है, इसका बार बार विचार करना चाहिए ! परन्तु सूक्ष्म दृष्टि का चमत्कार इससे आगे है ॥ ६ ॥ शुद्ध अचेतन तमोगुण है, शृद्ध चेतन सत्वगुण है और चेतनाचेतन मिश्रित होकर रजोगुण का काम चलता है ॥ ७ ॥ यही त्रिगुणों के रूप हैं । त्रिगुण के अगले कदम को गुणक्षोभिणी कहते हैं ॥ ६ ॥ रज, तम और सत्त्व, तीनों का कर्दम जहां गुप्त रहता है उसे महत्तत्त्व कहते हैं ॥ ६॥ प्रकृति-पुरुष, शिव-शक्ति और अर्धनारीनटेश्वर उसीको कहते हैं । बह निगुण का कर्दमरूप है ॥ १० ॥ जिसमें सूक्ष्मरूप से गुण की समानता रहती है उसे गुणलाम्य कहते हैं । और चैतन्यरूपी मूल- माया भी सूक्ष्म है ॥ ११॥ वह सूक्ष्म कर्दमरूपी मूलमाया ही ब्रह्मांड की महाकारण (आठवीं ) काया है-इस प्रकार के सूक्ष्म अन्वयों का बार वार विचार करना चाहिए ॥१२॥ चार खानि, पंचभूत और चौदह सूक्ष्म संकेतों में सब कुछ पा जाता है ॥ १३ ॥ ऊपर ऊपर देखने से मालूम नहीं होता, प्रयत्ल करने पर भी समझ में नहीं पाता । नाना प्रकार से लोगों के मन में सन्देह बढ़ता है ॥ १४ ॥ मूलमाया के चौदह नाम और पांच भूत मिल कर उन्नीस हुए। इनमें चार खानियां मिलने से तेईस हुए । इनमें से मूल चौदह बार बार देखना चाहिए ॥ १५॥ जो मनन करके समझ लेता है उसके पास सन्देह नहीं रहता। समझे बिना जो गड़वड़ रहता है वह व्यर्थ है ॥ १६ ॥ सब सृष्टि का बीज स्वाभाविक ही मूलमाया में रहता है। यह सब समझने से परमार्थ सिद्ध होता है ॥ १७ ॥ जो मनुष्य समझा हुअा होता है वह व्यर्थ बक- बक नहीं करता; निश्चयी पुरुष सन्देह में नहीं पड़ता और अपने परमार्थ को वह कभी खराब नहीं करता ॥ १८॥ जो शब्दातीत, बोला जा सकता है उसे वाच्यांश कहते हैं और शुद्ध लक्ष्यांश विवेक से लखना चाहिए ॥ १६ ॥ पूर्वपक्ष माया को कहते हैं, वह सिद्धान्त से लय हो जाती है। माया न रहने पर फिर उस स्थिति को क्या कहना चाहिए? ॥२०॥ अन्वय और व्यतिरेक पूर्वपक्ष का विचार है-माया का विचार है-सिद्धान्त में शुद्ध एक ही रहता है-उसमें दूसरा कुछ नहीं है ॥ २१ ॥ अधोमुख से-माया की ओर दृष्टि डालने से-भेद बढ़ता है और ऊर्ध्वमुख से- परब्रह्म की ओर लक्ष्य रखने से-भेद टूटता है । जो निःसंगता के साथ निर्गुणी है वही महायोगी है ॥ २२ ॥ जब माया का मिथ्यापन मालूम हो गया तब फिर उसका डर क्यों होना चाहिए? उसीके डर से तो स्वरूपस्थिति नहीं मिलती ॥ २३ ॥ मिथ्या माया से डर कर सत्य