पृष्ठ:दासबोध.pdf/६

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भूमिका। ३ का अर्थ जानने में कठिनाई आ पड़ती थी वहां आपकी सहयता बहुत लाभदायक होती थी। इस ग्रन्थ के लिखते समय श्रीयुत त्रिम्बकराव देहनकर बी० ए० एल० एल० वी० वकील बिलासपुर और श्रीयुत यशवन्तराव राजीवाले वी० ए० एल० एल० वी० वकील राय- पुर से अधिक सहायता मिली, अतएव इन दोनों सज्जनों को मैं यहाँ पर धन्यवाद देना अपना कर्तव्य समझता हूं । धुलिया को सत्कार्योत्तेजक सभा ने बड़े खोज के साथ दासबोध की जो मूल पुस्तक प्रकाशित की है उसी पर से यह अनुवाद किया गया है। अतएव इसकी ग्रामाणिकता में किसी प्रकार का सन्देह नहीं है। इन सब बातों में पाठकों को मालूम हो सकता है कि मराठी दासबोध का यह हिन्दी-अनुबाद कितना निर्धान्त, शुद्ध और यथार्थ है । गुजराती भापा भी दासबोध का अनुवाद प्रकाशित हो गया है; परंतु वह इस अनुवाद के समान पूर्णीर्थ-वोधक और शुद्ध नहीं है । जो महाशय उक्त सब बातों पर ध्यान देगें वे स्वयं इस ग्रंथ की योग्यता के विषय में निर्णय कर सकेंगे। इस अनुवाद की भाषा को, जहां तक हो सका, सरल, सुगम और सुवोध करने का यत्न किया गया है। संभव है कि, विषय की गंभीरता और मूल-ग्रन्थ की भाषा प्राचीन शैली की तथा पद्यात्मक होने के कारण कहीं कहीं भाषा की रचना भी कठिन प्रतीत हो; परंतु यह अनुवाद-क्रिया ही का स्वाभाविक तथा अटल परिणाम है—मार्मिकजन इसको दोप नहीं मानते । अस्तु । 'प्रायः एक वर्ष में मई १९१० ई० में अनुवाद तथा उसको दुहराने का काम पूरा हो गया-गुरुआज्ञा के प्रथम भाग का पालन किया गया । तब ग्रंथ-प्रकाशन की चिंता की गई । हिन्दी के बड़े बड़े प्रकाशकों से पूछा गया। मेरे पास इतना धन न था कि मैं स्वयं इस ग्रंथ को छपवाकर प्रकाशित कर सकता। इस लिये किसी अन्य प्रकाशक की आवश्यकता थी; यद्यपि मैं ग्रंथ के बदले में कुछ द्रव्य लिये बिना ही प्रकाशित कराने को राजी था, तथापि मेरे दुर्भाग्य से किसी हिन्दी-ग्रंथ-प्रकाशक ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार करने को कृपा न को । एक ने उत्तर दिया “ इस समय हमारे छापेखाने में काम बहुत है। आपकी पुस्तक को छापने का हमें अवकाश नहीं है।" दूसरे ने लिखा “ आप राजनीतिक मामलों में सरकार के संशयास्पद हैं, इस लिये आपकी लिखी पुस्तक हमारे छापेखाने में छापी नहीं जा सकती । हमने मराठी दासबोध का अनुवाद किसी और से कराया है । वही हमारे -येही प्रकाशित किया जायगा । "- खेद की बात है कि वह अनुवाद भी अब तक प्रकाशित न हुआ। तीसरे ने कहा, "यदि आप कोई किस्सा-कहानी, उपन्यास या नाटक लिखें तो हम आपकी पुस्तकें प्रसन्नतापूर्वक प्रकाशित करेंगे और आपको भी उनके बदले में कुछ द्रव्य मिल जाया करेगा, क्योंकि आजकल हिन्दी में ऐसी ही पुस्तकों की चाह और विक्री अधिक है।" इस तरह किसीने कुछ और कुछ उत्तर दिया। किसी हिन्दी-ग्रंथ प्रकाशक को दोप देने की मेरी इच्छा नहीं है। किसीने