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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१००

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९६

'अश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
जाँ सुपारी शजर-ए-बेद नहीं

सल्तनत दस्त बदस्त आई है
जाम-ए-मै, ख़ातम-ए-जमशेद नहीं

है तजल्ली तिरी सामान-ए-वुजूद
ज़र्र: बे परतव-ए-खुरशीद नहीं

राज़-ए-मा'शूक़ न रुस्वा हो जाये
वर्नः मर जाने में कुछ भेद नहीं

गर्दिश-ए-रँग-ए-तरब से डर है
ग़म-ए-महरूमि-ए-जावेद नहीं

कहते हैं, जीते हैं उम्मीद प लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं

९७


जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
ख़ियाबाँ ख़ियाबाँ इरम देखते हैं