पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९९

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रंज-ए-नौमीदि-ए-जावेद, गवारा रहियो ख़ुश हूँ गर नालः जवूनी कश-ए-तासीर नहीं सर खुजाता है, जहाँ ज़ख्म-ए-सर अच्छा हो जाय लज़्ज़त-ए-सँग ब अन्दाज:- ए-तकरीर नहीं जब करम रुख़सत-ए-बेबाकि-ओ-गुस्ताख़ी दे कोई तकसीर बजुज़ ख़जलत-ए-तक़सीर नहीं ग़ालिब, अपना यह 'अकीदा है, बकौल-ए-नासिख़ आप बेबहरः है, जो मो तकिद-ए-मीर नहीं मत मर्दुमक-ए-दीदः में समझो यह निगाहें हैं जम अ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म में ग्राहे ९५ बर्शकाल-ए-गिरियः-ए- 'आशिक है, देखा चाहिये खिल गई मानिन्द-ए-गुल, सौ जा से दीवार-ए-चमन उल्फत-ए-गुल से ग़लत है दावः-ए-वारस्तगी सर्व है बावस्फ़ - ए- आजादी गिरफ्तार -ए- चमन