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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१०१

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दिल आशुफ्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन के
सुवैदा में सैर-ए-'अदम देखते हैं

तिरे सर्व क़ामत से, इक क़द्द-ए-आदम
क़यामत के फ़ितने को, कम देखते हैं

तमाशा कर अय मह्व-ए-आईनादारी
तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं

सुराग़-ए-तुफ़-ए-नालः ले, दाग़-ए-दिल से
कि शब रौ का नक़्श-ए-क़दम देखते हैं

बना कर फ़क़ीरों का हम भेस, ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं

९८


मिलती है ख़ू-ए-यार से नार, इल्तहाब में
काफ़िर हूँ, गर न मिलती हो राहत 'अज़ाब में

कब से हूँ, क्या बताऊँ, जहान-ए-ख़राब में
शबहा-ए-हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में

ता फिर न इन्तिज़ार में नीन्द आये 'अम्र भर
आने का वा'दः कर गये, आये जो ख़्वाब में