पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१०१

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दिल आशुफ्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन के सुवैदा में सैर - ए - 'अदम देखते हैं तिरे सर्व कामत से, इक कद-ए-आदम कयामत के फ़ितने को, कम देखते हैं तमाशा कर अय मह्व-ए-आईनादारी तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं सुराग़ -ए-तुफ़-ए-नालः ले, दारा-ए-दिल से कि शब रौ का नक्श-ए-क़दम देखते हैं बना कर फ़क़ीरों का हम भेस, ग़ालिब तमाशा - ए -अहल-ए-करम देखते हैं मिलती है खू-ए-यार से नार, इल्तहाब में काफ़िर हूँ, गर न मिलती हो राहत 'अजाब में कब से हूँ, क्या बताऊँ, जहान-ए-ख़राब में शबहा-ए-हिज्र को भी रखू गर हिसाब में ता फिर न इन्तिजार में नीन्द आये 'अम्र भर आने का वादः कर गये, आये जो ख़्वाब में