पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१२८

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गलत न था, हमें खत पर, गुमाँ तसल्ली का न माने दीदः-ए-दीदार जू, तो क्योंकर हो बताओ उस मिशः को देखकर, हो मुझको करार यह नेश हो रग-ए-जाँ में फरो, तो क्योंकर हो मुझे जुनूं नहीं, ग़ालिब , वले बकौल-ए-हुजूर फिराक-ए-यार में तस्कीन हो, तो क्योंकर हो १२७ किसी को देके दिल कोई नवा सँज-ए-फुगाँ क्यों हो न हो जब दिल ही सीने में, तो फिर मुँह में ज़बाँ क्यों हो वह अपनी खू न छोड़ेंगे, हम अपनी व क्यों छोड़ें सुबुक सर बन के क्या पूछे, कि हमसे सरगिरीं क्यों हो किया ग़मख़्वार ने रुस्वा; लगे आग इस महब्बत को न लावे ताब जो ग़म की, वह मेरा राजदाँ क्यों हो वफ़ा कैसी, कहाँ का 'निश्क, जब सर फोड़ना ठहरा तो फिर, अय सँग दिल, तेरा ही सँग-ए-पास्ताँ क्यों हो क़फ़स में, मुझसे रूदाद ए-चमन कहते, न डर, हमदम गिरी है जिस प कल बिजली, वह मेरा आशियाँ क्यों हो