पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१२९

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यह कह सकते हो, हम दिल में नहीं हैं, पर यह बतलायो । कि जब दिल में तुम्ही तुम हो, तो आँखों से निहाँ क्यों हो । गलत है जज्ब-ए-दिल का शिकवः, देखो जुर्म किस का है न खेचो गर तुम अपने को, कशाकश दरमियाँ क्यों हो यह फ़ितनः, आदमी की ख़ानःवीरानी को क्या कम है हुये तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आस्माँ क्यों हो यही है आजमाना, तो सताना किस को कहते हैं 'अदू के हो लिये जब तुम, तो मेरा इम्तिहाँ क्यों हो कहा तुमने कि, क्यों हो रौर के मिलने में रुस्वाई बजा कहते हो, सच कहते हो, फिर कहियो कि हाँ क्यों हो निकाला चाहता है काम क्या ता'नों से तू , गालिब तिरे बेमेह कहने से, वह तुझ पर मेहरबाँ क्यों हो १२८ रहिये अब ऐसी जगह चलकर, जहाँ कोई न हो हम सुखन कोई न हो और हम ज़बाँ कोई न हो बेदर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिये कोई हमसायः न हो और पास्वाँ कोई न हो