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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१३०

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पड़िये गर बीमार, तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाइये, तो नौहः ख़्वाँ कोई न हो

१२९


अज़ मेह्र ता ब ज़र्रः दिल-ओ-दिल है आइनः
तूती को शश जिहत से मुक़ाबिल है आइनः

१३०


है सब्ज़: ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़मकदः
जिसकी बहार यह हो, फिर उसकी ख़ज़ाँ न पूछ

नाचार बेकसी की भी हसरत उठाइये
दुश्वारि-ए-रह-ओ-सितम-ए-हमरहाँ न पूछ

१३१


सद जल्वः रू ब रू है, जो मिशगाँ उठाइये
ताक़त कहाँ, कि दीद का एहसाँ उठाइये

है सँग पर, बरात-ए-'आश-ए-जुनून-ए-'अश्क़
या'नी हनोज मिन्नत-ए-तिफ़्लाँ उठाइये