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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१३२

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सर पा-ए-ख़ुम प चाहिये हँगाम-ए-बेख़ुदी
रू सू-ए-क़िबलः वक़्त-ए-मुनाजात चाहिये

या'नी ब हस्ब-ए-गर्दिश-ए- पैमान:-ए-सिफ़ात
आरिफ़ हमेशः मस्त-ए-मै-ए-ज़ात चाहिये

नश्व-ओ-नुमा है अस्ल से, ग़ालिब-फ़ुरू'अ को
ख़ामोशी ही से निकले है, जो बात चाहिये

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बिसाते 'अिज्ज़ में था एक दिल, यक क़तरः ख़ूँ वह भी
सो रहता है, बअन्दाज-ए-चकीदन सर निगूँ, वह भी

रहे उस शोख़ से आज़ुर्दः हम चन्दे, तकल्लुफ़ से
तकल्लुफ़ बरतरफ़, था एक अन्दाज-ए-जुनूँ वह भी

ख़याल-ए-मर्ग, कब तस्कीं दिल-ए-आज़ुर्दः को बख़्शे
मिरे दाम-ए-तमन्ना में है इक सैद-ए-ज़ुबूँ, वह भी

न करता काश नालः, मुझको क्या मा'लूम था, हमदम
कि होगा बाइस-ए-अफ़ज़ाइश-ए-दर्द-ए-दुरूँ वह भी

न इतना बुर्रिश-ए-तेग़-ए-जफ़ा पर नाज़ फ़रमायो
मिरे दरिया-ए-बेताबी में है इक मौज-ए-ख़ूँ वह भी