पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१३२

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सर पा-ए-ख़ुम प चाहिये हँगाम-ए-बेखुदी रू सू-ए-निबलः वक्त-ए-मुनाजात चाहिये या'नी ब हस्ब-ए-गर्दिश-ए- पैमान :-ए-सिफ़ात आरिफ़ हमेशः मस्त-ए-मै-ए-जात चाहिये नश्व-ओ-नुमा है अस्ल से, गालिब-फुरू' को ख़ामोशी ही से निकले है, जो बात चाहिये बिसाते 'अिज्ज में था एक दिल, यक कतरः लूँ वह भी सो रहता है, बअन्दाज-ए-चकीदन सर निगूं, वह भी रहे उस शोख़ से आजुर्दः हम चन्दे, तकल्लुफ़ से तकल्लुफ़ बरतरफ़, था एक अन्दाज-ए-जुनूँ वह भी ख़याल-ए-मर्ग, कब तस्की दिल-ए-आजुर्दः को बख्शे मिरे दाम-ए-तमन्ना में है इक सैद-ए-जुबूं, वह भी . न करता काश नालः, मुझको क्या मालूम था, हमदम कि होगा बाइस-ए-अफ़जाइश-ए-दर्द-ए-दुरूँ वह भी न इतना बुरिश-ए-तेरा-ए-जफ़ा पर नाज फ़रमायो । मिरे दरिया-ए-बेताबी में है इक मौज-ए-खं वह भी .