पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१३४

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गालिब, तिरा अहवाल सुना देंगे हम उनको वह सुन के बुला लें, यह इजारा नहीं करते घर में था क्या, कि तिरा राम उसे गारत करता वह जो रखते थे हम इक हसरत-ए-ता'मीर, सो है १३७ राम-ए-दुनिया से, गर पाई भी फुर्सत, सर उठाने की फलक का देखना, तकरीब तेरे याद आने की खुलेगा किस तरह मजनूं मिरे मकतूब का, यारब कसम खाई है उस काफ़िर ने, काग़ज़ के जलाने की लिपटना परनियाँ में शो'ल:-ए-आतश का आसाँ है वले मुश्किल है हिकमत, दिल में सोज़-ए-राम छुपाने की उन्हें मंजूर अपने जख्मियों का देख आना था उठे थे सैर-ए-गुल को, देखना शोख़ी बहाने की हमारी सादगी थी, इल्तिफ़ात-ए-नाज़ पर मरना तिरा थाना न था, जालिम, मगर तम्हीद जाने की