पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१३९

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किसको सुनाऊँ हस्रत-ए-इजहार का गिला
दिल फ़र्द-ए-जम‘-ओ-खर्च जबाँहा-ए-लाल है

किस पर्दे में है आइन:परदाज, अय ख़ुदा
रहमत, कि ‘अुज़्रख्वाह लब-ए-बेसवाल है

है है, ख़ुदा न ख़्वास्तः वह और दुश्मनी
अय शौक़, मुनफ‘अिल, यह तुझे क्या ख़याल है

मिश्कीं लिबास-ए-का‘बः, ‘अली के क़दम से जान
नाफ़-ए-ज़मीन है, न कि नाफ़-ए-ग़ज़ाल है

वहशत प मेरी ‘अर्स:-ए-आफ़ाक़ तँग था
दरिया ज़मीन को ‘अरक़-ए-इन्फ़ि‘आल है

हस्ती के मत फ़रेब में आजाइयो, असद
‘आलम तमाम हल्क:-ए-दाम-ए-ख़याल है

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तुम अपने शिकवे की बातें, न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से, कि इसमें आग दबी है

दिला, यह दर्द-ओ-अलम भी तो मुग़तनम है, कि आख़िर
न गिरियः-ए-सहरी है, न आह-ए-नीमशबी है