पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१४१

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१४६ मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है जिसे कहते हैं नालः वह इसी 'अालम का 'अन्का है ख़ज़ाँ क्या, फ़ल-ए-गुल कहते हैं किस को, कोई मौसम हो वही हम हैं, क़फस है, और मातम बाल-ो-पर का है वफ़ा-ए-दिल्बराँ है इत्तिफ़ाक़ी, वनः, अय हम्दम असर फ़रियाद-ए-दिल्हा -ए-हजीं का, किसने देखा है न लाई शोख़ि-ए-अन्देशः ताब-ए-रज-ए-नौमीदी कफ़-ए-अफ़सोस मलना 'अद-ए-तजदीद-ए-तमन्ना है '१४७ रम कर जालिम, कि क्या बूद -ए-चराग़ - ए -कुश्तः है नब्ज़-ए-बीमार-ए-वफ़ा, दूद-ए- चराग़-ए-कुश्तः है दिल्लगी की आरजू, बेचैन रखती है वर्नः याँ बरौनक्री, सूद-ए-चराग़-ए-कुश्तः हमें है