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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१४१

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मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है
जिसे कहते हैं नालः वह इसी 'आलम का 'अन्क़ा है

ख़ज़ाँ क्या, फ़स्ल-ए-गुल कहते हैं किस को, कोई मौसम हो
वही हम हैं, क़फस है, और मातम बाल-ओ-पर का है

वफ़ा-ए-दिल्बराँ है इत्तिफ़ाक़ी, वर्नः, अय हम्दम
असर फ़रियाद-ए-दिल्हा-ए-हजीं का, किसने देखा है

न लाई शोख़ि-ए-अन्देशः ताब-ए-रँज-ए-नौमीदी
कफ़-ए-अफ़सोस मलना 'अह्द-ए-तजदीद-ए-तमन्ना है

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रह्म कर ज़ालिम, कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्तः है
नब्ज़-ए-बीमार-ए-वफ़ा, दूद-ए-चराग़-ए-कुश्तः है

दिल्लगी की आरज़ू, बेचैन रखती है हमें
वर्नः याँ बरौऩकी, सूद-ए-चराग़-ए-कुश्तः है