पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. १४८

चश्म-ए-ख़ुबाँ ख़ामुशी में भी नवा पर्दाज है सुर्मः, तू कहवे, कि दूद-ए-शो'लः-ए-आवाज है पैकर-ए-'ग्रुश्शाक, साज-ए-ताले'-ए-नासाज है नालः गोया गर्दिश-ए-सय्यारः की आवाज है दस्तगाह-ए-दीदः-ए-खूबार-ए-मजनूं देखना यक बयाबाँ जल्वः-ए-गुल फ़र्श-ए-पा अन्दाज है 'निश्क मुझको नहीं, वहशत ही सही मेरी वहशत, तिरी शोहत ही सही कत अ कीजे न त'अल्लुक़ हम से कुछ नहीं है, तो 'अदावत ही सही मेरे होने में है क्या रुवाई अय, वह मज्लिस नहीं, खल्वत ही सही हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने गैर को तुझ से महब्बत ही सही