पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१४५

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बेसर्फः ही गुज़रती है, हो गर्चेः 'शुम्र-ए-खिज्र हज़रत भी कल कहेंगे, कि हम क्या किया किये मक़दूर हो तो खाक से पूछू कि, अय लईम तू ने वह गँजहा -ए-गिराँमायः क्या किये किल रोज तुहमतें न तराशा किये 'अदू किस दिन हमारे सर प न आरे चला किये सोहबत में रौर की, न पड़ी हो कहीं यह खू देने लगा है बोसः बिगैर इल्तिजा किये जिद की है और बात, मगर खू बुरी नहीं भूले से उसने सैकड़ों वादे वफा किये गालिब, तुम्हीं कहो, कि मिलेगा जवाब क्या माना कि तुम कहा किये और वह सुना किये रफ़्तार-ए-'शुम्र, क़त-ए-रह-ए-इज्तिराब है इस साल के हिसाब को, बर्क आफ़ताब है मीना -ए-मै है सर्व, नशात-ए-बहार से बाल-ए-तद्व जल्वः-ए-मौज-ए-शराब है