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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१४५

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बेसर्फः ही गुज़रती है, हो गर्चेः 'अम्र-ए-ख़िज़्र
हज़रत भी कल कहेंगे, कि हम क्या किया किये

मक़दूर हो तो खाक से पूछूँ कि, अय लईम
तू ने वह गँज्हा-ए-गिराँमायः क्या किये

किस रोज़ तुहमतें न तराशा किये 'अदू
किस दिन हमारे सर प न आरे चला किये

सोहबत में ग़ैर की, न पड़ी हो कहीं यह ख़ू
देने लगा है बोसः बिग़ैर इल्तिजा किये

जिद की है और बात, मगर ख़ू बुरी नहीं
भूले से उसने सैकड़ों वा'दे वफा किये

ग़ालिब, तुम्हीं कहो, कि मिलेगा जवाब क्या
माना कि तुम कहा किये और वह सुना किये

१५३


रफ़्तार-ए-'अम्र, क़त'-ए-रह-ए-इज्तिराब है
इस साल के हिसाब को, बर्क़ आफ़ताब है

मीना-ए-मै है सर्व, नशात-ए-बहार से
बाल-ए-तद्व जल्वः-ए-मौज-ए-शराब है