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ज़ख़्मी हुआ है पाश्नः पा-ए-सबात का
ने भागने की गौं, न इक़ामत की ताब है
जादाद-ए-बादः नोशि-ए-रिन्दाँ है शश जिहत
ग़ाफ़िल गुमाँ करे है, कि गेती खराब है
नज़्ज़ारः क्या हरीफ हो, उस बर्क़-ए-हुस्न का
जोश-ए-बहार, जल्वे को जिसके निकाब है
मैं नामुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ
माना, कि तेरे रुख से निगह कामयाब है
गुज़रा असद, मसर्रत-ए-पैग़ाम-ए-यार से
क़ासिद प मुझको रश्क-ए-सवाल-ओ-जवाब है
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देखना क़िस्मत, कि आप अपने प रश्क आजाये है
मै उसे देखूँ, भला कब मुझसे देखा जाये है
हाथ धो दिल से, यही गर्मी गर अन्देशे में है
आबगीनः, तुन्दि-ए-सहबा से पिघला जाये है
ग़ैर को, यारब, वह क्योंकर मन'-ए-गुस्ताख़ी करे
गर हया भी उसको आती है, तो शर्मा जाये है