पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१४६

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ज़मी हुअा है पाश्नः पा-ए-सबात का ने भागने की गौं, न इकामत की ताब है जादाद-ए-बादः नोशि-ए - रिन्दाँ है शश जिहत शाफ़िल गुमाँ करे है, कि गेती खराब है नज़ारः क्या हरीफ हो, उस बर्क-ए-हुस्न का जोश-ए-बहार , जल्वे को जिसके निकाब है मैं नामुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ माना, कि तेरे रुख से निगह कामयाब है गुजरा असद, मसर्रत-ए- पैग़ाम-ए-यार से क़ासिद प मुझको रश्क-ए- सवाल-ो-जवाब है देखना किस्मत, कि आप अपने प रश्क बाजाये है मै उसे देखू, भला कब मुझसे देखा जाये है हाथ धो दिल से, यही गर्मी गर अन्देशे में है आबगीनः, तुन्दि-ए-सहबा से पिघला जाये है गैर को, यारब, वह क्योंकर मन-ए-गुस्ताख़ी करे गर हया भी उसको अाती है, तो शर्मा जाये है